श्री वारकरी आयुर्वेद चिकित्सालय​​

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गुटी वटी कल्पना

महत्वाचे लेख

गुटी वटी कल्पना

 

आयुर्वेद में रुग्ण चिकित्सा के लिए अनेक कल्पो का विचार किया गया है, जैसे कषाय कल्पना , स्नेह कल्पना, संधान कल्पना इत्यादि। जांगम, औदभिध और पार्थिव औषधियों को प्राकृत स्तिथी में उपयोग नही किया जा सकता है। इसलिए इन द्रव्यों को सात्म्य और सेवन योग्य बनाने के लिए विविध संस्कार किये जाते है, जैसे, शोधन, मारण, भस्मीकरण, चूर्णित, स्वरस, पुट इत्यादि।

रोग और रोगी की चिकित्सा के लिए औषधि का चयन उसके सूक्ष्म परीक्षण करने के बाद किया जाता है। गुटी-वटी कल्पना भी इनमें से एक कल्पना है।

व्याख्या:

बटको मोदकः पिण्डी गुडो वर्तिस्तथा वटी ।

वटिका गुडिका चेति संज्ञावान्तर भेदतः ।।

वटक, मोदक, पिण्डी, गुड़, वर्ति, वटी और वटिका तथा गुटिका यह सब एक ही प्रकारकी बनावट है, केवल आकार और परिमाणमें भेद होता है। इनमें प्रधान भाग काष्ठौषधियोंका ही होता है।

वटी कल्पना यह कल्क कल्पना का ही भाग है

तस्य समस्तद्रव्यापरित्यागाद् आप्लुतोपयोगाच्च कल्कादभेदः ।(अष्टाङ्गसंग्रह क०१८)

भावनाविधि:

द्रवेण यावता द्रव्यमेकीभूयाद्रतां यजेत् ।

तावत् प्रमाणं कर्तव्यं मिषग्भिर्भावना विधौ ।।

भाव्यद्रव्यसमं काथ्यं क्वाथ्यादष्टगुणं जलम् ।

अष्टांशशोषितः काथो भाव्यानां तेन भावना ।।

जितने द्रव पदार्थसे औषधि अच्छी तरह भीग जाय उतना ही द्रव पदार्थ लेकर भावना देनी चाहिये । अथवा जिस चीज़के काथसे भावना देनी हो वह भाव्य (जिसे भावना देनी हो) द्रव्यके बराबर लेकर आठ गुने पानीमें पकाने और आठवां भाग शेष रहने पर छानकर उससे भावना दे। यदि गोलियोंको धूपमें सुखानेके लिये लिखा हो तो धूपमें और छायामें सुखानेके लिये लिखा हो तो छायामें ही सुखाना चाहिये, क्योंकि धूप और छांवके प्रभावसे भी दवाके गुणमें अन्तर पड़ जाता है।

 

गुटी – वटी निर्माण विधि प्रकार:

1. साग्नि/ निराग्नि

2. भावना : स्वरस/गोमूत्र/दुग्ध/मधु/जल/घृत

3. Binding : गुड़/शर्करा/गुग्गुल/मधु

4. अनुपान: स्वरस/फलरस/दुग्ध/छाछ इत्यादी

 

गुटी वटी बनाते समय binding का प्रमाण

1. शर्करा: चूर्ण के 4 गुना

2. गुड़: चूर्ण के 2 गुना

3. गुग्गुल: चूर्ण के समभाग

4. मधु: चूर्ण के समभाग

5. जल/स्वरस: मर्दन के आवश्यकता अनुसार

 

गुटी – वटी का संदर्भ संहिताओं में अनेक बार किया गया है

1. गुटिका : चरक/अष्टांग संग्रह/ अष्टांग हृदय/ चक्रदत्त/ भैषज्य रत्नावली

2. गुडम : चरक

3. वटक : चरक /सुश्रुत/ अष्टांग संग्रह/ अष्टांग हृदय / चक्रदत्त/ शारंगधर

4. वटी : अष्टांग संग्रह/अष्टांग हृदय/चक्रदत्त/शारंगधर

 

सवीर्यता अवधि:

वटी/वटक/गुटिका : 1 वर्ष

 

गुटीकादि निर्माण की आवश्यकता?

जब आयुर्वेद में पहले से ही अनेक प्रकार के कल्पो का उल्लेख है, तो फिर गुटी वटी की निर्माण की इतनी आवश्यकता क्यों? इसके कारण निम्न है

1. सेवन के लिए सुखकर

2. उचित और निर्धारित मात्रा में औषधि का सेवन

3. दूसरे कल्पो की तुलना में सवीर्यता अवधी अधिक काल तक है

4. भंडारण और परिवहन के लिए सुखकर

5.  भावना द्रव्यों के अनुसार अनुकूल

6.  अधिक समय तक ले सकते है

7.  छोटे बच्चो से वृद्धो तक, सभी के सेवन के लिए सुखकर

 

आयुर्वेद में वर्णित अनेक गुटी वटी और उनके संदर्भ एवं रोगाधिकार/उपयोगिता का यहां संकलन करने की कोशिश की गई है

 

 

 

 

कल्प (गुटी-वटी)

संदर्भ

रोगाधीकार / उपयोग

1

अङ्कोट वटक

भा.प्र.अति.

वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज अतिसार

2

अग्निकुमार मोदक

भा.प्र.अति.

ग्रहणी, श्वास, खांसी, आमवात, मंदाग्नि, जीर्णज्वर, विषमज्वर, विबंध, अफारा, शूल, यकृत, प्लीहा, 18 प्रकार के कुष्ठ, उदावर्त, गुल्म

3

अग्निगर्भा वाटिका

..प्ली. चि.

प्लीहा, गुल्म, उदररोग, शूल, यकृत, अष्ठीला, कामला, हलीमक, पाण्डु, कृमि, कुष्ठ, अफारा, खांसी, व्रण, विस्फोटक, श्लेष्मज संग्रहणी

4

अग्नि जननी वटी

. . .. 16

अग्नि दीप्त

5

अग्नितुण्डी वटी

भै. .. मां

अग्निमांद्य

6

अग्नि दीपनी वटी

.रा.सु.

अग्नि दीपन

7

अगस्ति मोदक

यो..अग्नि. चि.

सूजन, बवासीर, ग्रहणी, खांसी, उदावर्त

8

अगस्ति वटी

वृ. नि. .शूला.

शूल, गुल्म, कृमि, मंदाग्नि, प्लीहा, आमवात

9

अजमोदादि वटक

भै. ..वा.चि.

आमवात, हैजा, प्रतूनी, हॄदरोग, उग्र गृध्रसी, कमर, बस्ती, गुदा और जंघा की हडफुटन, सूजन, गठिया

10

अजमोदादी वटी

वृ.निं..भा. 5

संधिवात, दारुण आमवात, आढ्यवात, हनुस्तम्भ, शिरोवात, अपतानक, भ्रू शंख, कर्ण, नाक, आंख और दारुण जिव्हास्तम्भ आदि, लंगड़ापन, लूलापन, सर्वांग वायु, एकांग वायु, अर्दित, पादहर्ष, पक्षाघात

11

अजाज्यादि गुटिका

वृ.नि.र.

सभी प्रकार की बवासीर

12

अजीर्णहरीवटी

यो.र.अ.चि.

क्षुधावर्धक, शूल, जीर्णज्वर, खांसी, अरुची, पांडू, दाह, उदररोग, खुजली, आमवात, अफारा, हलीमक, मंदाग्नी

13

अनङ्गमेखलागुटिका

वृ. यो. त.

वीर्यस्तम्भक और कामवर्द्धक

14

अनङ्गमेखलामोदक

वृ. यो. त.

बलवर्द्धक, वीर्य वर्द्धक, कामशक्ति वर्द्धक, वीर्य स्तम्भक, पाण्डु, खांसी, क्षय, श्वास, शूल, प्रमेह, व्रण और भ्रम नाशक तथा अग्नि संदीपक

15

अभयादिगुटिका

वृ. नि. र. भा. ५. आ. वा.

आमरोग

16

अभयादि चतुस्समवटी

वृ. यो. त.

त्रिदोष, आमातिसार, अफारा, विबंध, हैजा, कामल, अरुचिका, अग्निप्रदिप्त

17

अभयादिमोदक

शा. ध. सं. उ. खं. अ. ४

विषम ज्वर, मन्दाग्नि, पाण्डु, खांसी, भगंदर, दुष्ट कोढ़, गुल्म, बवासीर, गलगण्ड, भ्रम, उदररोग, विदाह, प्लीहा, प्रमेह, यक्ष्मा, नेत्ररोग, वातरोग, अफारा, मूत्रकृच्छ, पथरी, पृष्ठ पार्श्व, उरू, जांघ तथा उदरशूल

18

अभयामोदक (१)

वृ. यो. त.

प्लीहा, बवासीर, गुल्म, उदररोग, पाण्डु और मन्दाग्नि

19

अभयामोदक (२)

वृ. नि. र. भा. ५ पा. चि.

पाण्डु

20

अभया वटी

रसे. चि. म.

जीर्णज्वर, पाण्डु, प्लीहा, उदररोग, रक्त पित्त, अम्लपित्त, पित्ताजीर्णादिक

21

अभ्रकहरीतकी

र. रा. सु.

त्रिदोषज अर्श

22

अभ्रकादिवटी

वृ. नि. र. भा. ४ सं. चि.

४ प्रकारकी संग्रहणी

23

अभ्रवटिका (१)

रा. रा. सु.

खांसी, क्षय, श्वास, कफ़, वायुके रोग और ज्वर, अतिसार, चातुर्थिक ज्वर, सूतिका रोग

24

अमरसुन्दरीवटी

 

वृ. नि. र. भा. ५वा. व्या.

अपस्मार, सन्निपात, श्वास, खांसी, गुदरोग, अस्सी प्रकारके वायुरोग और विशेष कर उन्मादका नाश करती हैं

25

अमृतकल्पवटी

र. सा. सं. अ. चि

शूल, मंदाग्नि, अजीर्ण

26

अमृतप्रभावटी

वृ. नि. र. भा. ५; अरुचौ

अजीर्ण तथा अग्निमांद्य

27

अमृतवटी (१)

रसे. चि. म. अ. ९

अजीर्ण, कफ रोग, वायुरोग नाशक तथा अग्नि दीपक और रुचि वर्द्धक है।

28

अमृतवटी (२)

भै. र.अ. मां.

कफ, पित्तरोग और अग्निमान्द्य

29

अमृतवर्तिका

भै. र. रसायने

श्रेष्ठ रसायन

30

अमृतसारगुटिका

र.र.रसायने.

रसायन

31

अमृताङ्कुरवटी

भै. र. क्षुद्र

क्षुद्र रोग, पित्त और रक्तदोषज रोग, जीर्ण ज्वर, प्रमेह, कृशता और अग्निमांद्य, बल पुष्टि और कान्ति तथा बुद्धि बढती हैं।

32

अमृतानामगुटिका

 

 

र. रा. सु.

८० प्रकार की वात व्याधि, १८ प्रकार के कुष्ठ, २० प्रकार के प्रमेह, ६ प्रकार के अपस्मार, नाड़ी व्रण (नासूर) ११ प्रकारका क्षय, ऊर्ध्वश्वास, सूजन, प्रसूतवात, आमवात, पाण्डु, कामला, बवासीर आदि

33

अम्लपित्तान्तको मोदकः

 

भै. र. अ. पि.

वमन, मूर्छा, दाह, खांसी, श्वास, भ्रम, प्रमेह, सूतिका रोग, शूल, अग्निमांद्य, मूत्रकृच्छ्र, गलग्रह और अम्लपित्तादि

34

अर्जकादि वटिका

भै. र. वी. स्तं.

वीर्य स्तम्भक व वृष्य

35

अर्द्धनारीश्वरः

भै. र. शि. रो.

शिरो वेदना

36

अर्शोधनवटक

र. र. स. अ. १५

बवासीर, मंदाग्नी

37

अष्टांगलयणवटिका

 

च. सं. चि. अ. २५

अत्यन्त अग्नि सन्दीपक और कफ प्रधान मदात्यय नाशक तथा स्रोत शोधक

38

अष्टादशांगगुटिका

बं. से. पां. चि.

पाण्डु, शोथ, प्रमेह, हलीमक, हृद्रोग, ग्रहणी, श्वास, खांसी, रक्तपित्त, अर्श, उरुग्रह, आमवात, व्रण, कुष्ट, कफ विद्रधी और श्वेत कुष्ठ

39

आदित्य गुटिका

वै. जी.

सर्व प्रकार का शूल और अग्निमांद्य

40

आनन्द भैरवी वटी

र. चि. म. । अ. ९

अश्मरी

41

आमनाशिनी वटिका

र. चि. स्तबक. ४

विरेचन

42

आमवातगजसिंहोमोदकः

र. सा. सं. आ. वा.

शूल, रक्त पित्त, अम्लपित्त और आमवात

43

आमलक्यादि गुटिका

 

वृ. नि. र., शा. घ. म. ख. अ. ७, भा. प्र. म. खं. तृष्णा.

तृष्णा, मुख शोष

44

आमवातारिः

र. चि. म. ९. अ.

वात रोग

45

आमवातारि वटिका

र. सा.सं.

पाचक, भेदक तथा आमवात, गुल्म, शूल, उदररोग, यकृत, प्लीहोदर, अष्ठीला, कामला, पांडु, अरुचि, ग्रंथिशूल, शिरःशूल, वातरोग, गृध्रसी, गलगण्ड, गण्डमाला, क्रिमि, कुष्ट, भगन्दर, विद्रधि, अन्त्रवृद्धि, बवासीर और गुदा के समस्त रोग

46

अपर आमवातारि वटिका

र. सा. सं.

आमवात

47

आरग्वधादि वर्ती

 

 

वृ. नि. र., सु. सं चि. अ. र; भा. प्र. म. खं. नाडीव्रण

व्रण शोधन

48

इन्दुकला वटिका

भै. र. परिशि.

मसूरिका, विस्फोटक, लोहित ज्वर और व्रण

49

इन्दुवटी

भै. र. कर्ण

कर्णनाद, वातज रोग, २० प्रकार के प्रमेह

50

इन्द्रब्रह्मवटी

र. सा. सं. अपस्मारे

अपस्मार

51

इन्द्रवटी

 

र. सा. सं, र. का. थे, प्रमेह

प्रमेह

52

इक्ष्वादिमोदकं

वृ. नि. र., क्षय.

संग्रहणी, ११ प्रकारके यक्ष्मा और भूतावेश का नाश होता है एवं स्वर, कान्ति, तुष्टि, पुष्टि, आयु आदि की वृद्धि होती है । क्षीण वीर्य एवं व्याकुलताग्रस्त वृद्धों के लिये हितकर, वाजीकरण, वंध्यत्व नाशक, धनुष, मद्य, हृद्रोग, प्लीहा, मूत्रकृच्छ्र, अपतन्त्रक, अपस्मार, विषदोष और उन्माद नाशक तथा रसायन

53

उन्मादभञ्जनी गुटीका

र. सा. सं; उन्माद

अपस्मार, उन्माद

54

एरण्डादि गुटी

 

वृ. नि. र., वृ. यो. त. ९३ त., आ. वा.

आमवात

55

एलादिगुटीका

च. द., र. पि.

खांसी, श्वास, ज्वर, हिचकी, छर्दि, मूर्च्छा, मद, भ्रम, रक्त ष्ठीवन, पार्श्वशूल, अरुचि, शोथ, प्लीहा-रोग, आढयवात, स्वरभेद, क्षत और क्षयका नाश, गुटिका तर्पणी, वृष्या और रक्त-पित्त नाशिनी

56

एलाद्योमोदकः

भै. र. मदा.

मदात्यय

57

कणादिवटी (१)

रसे. चि. म. अ. ९

श्लीपद

58

कणादिवटी (२)

वृ. नि. र. । वा. व्या.

समस्त वात विकार

59

कफन्नीवटी

वृ. नि. र. । कास.

कफघ्न

60

करञ्जबीजवर्ती

वृ. नि. र; ग. नि; बु. यो. त. ७१; वृ. मा.

नेत्रपुष्प

61

कर्पूरवर्तिः

बृ. नि. र. । मूत्राघा.

मुत्राघात

62

कर्पूरसुन्दरी वटिका

र. प्र. सु. अ. ८

शीतवात, संग्रहणी, बवासीर, प्रबल अतिसार, अग्निमांद्य और अफ्रीकी आदत दूर होती है एवं कामशक्ति बढ़ती है।

63

कलिंगाव्यगुटिका

धन्व. । ज्व.

ज्वरातिसार, शूलयुक्त अतिसार

64

कल्पलतावटी

भै. र. । ग्रह.

पुरानी संग्रहणी, दुस्साध्य पुराना ज्वर और पाण्डु

65

कल्याणगुटिका

च. सं. क. अ. ७

कुष्ठ, बवासीर, कामला, प्रमेह, गुल्म, उदररोग, भगन्दर, संग्रहणी और पाण्डु, पुंसत्व

66

कस्तुरिगुटिका

नपुंसकामृत

शुक्रक्षय, प्रमेह, शैथिल्य

67

काकणन्घवटी

र. र. । कुष्ठे

काकण (कुष्ठ)

68

काकजंघादिवटी

वृ. नि. र. । स्व. भे.

स्वर माधुर्य

69

काङ्कायनगुटिका (१)

 

यो. र.। अर्श; ग. नि. गु. ४ । यो. चि. म.अ. ३ । च. द., बं. से.

बवासीर

70

काङ्कायनगुटिका (२)

शा. घ. म. खं. अं. ७

गुल्म, हृद्रोग, ग्रहणी, शूल, क्रिमि और बवासीर

71

काङ्कायन गुटिका (३)

च. द. गुल्मे

गुल्म, हृद्रोग, क्रिमि और बवासीर

72

कामदेववटी

 

 

वृ. यो. त. १४७ त.

जरा नाशक, अत्यन्त वाजीकर, वीर्य, क्षुधा, तेज, कान्ति और स्थूलता वर्द्धक, मानसिक रोग नाशक, मदभंजन एवं मनोविनोदकारी

73

कामसुन्दरो मोदकः

वृ. यो. त. १४७ त.

वाजीकर

74

कामाग्निसंदीपनो मोदकः

यो. र. वाज़ी.

कामवर्धक व वृष्य, ८० प्रकारके वातज रोग, पित्तजरोग, २० प्रकारके कफज रोग, अत्यन्त अग्निमांद्य, दुस्साध्य कामला, भगंदर, पांडु, प्रमेह, अतिसार, कृमि, हृद्रोग, ग्रहणी विकार, खांसी, ज्वर, श्वास, राजयक्ष्मा, कफज प्रतिश्याय (जुकाम) शूल और आमवात आदि अनेक रोगनाशक, सन्ता-नोत्पादक, सर्वत्र पथ्य, सुखदायी, बल्य, बली पलित नाशक एवं रसायन

75

कामेश्वरो मोदकः (१)

भै.र.। ग्रह.

स्तम्भक, वशीकरण, अत्यन्त सुखदायक, कामिनी विद्रावक, पौष्टिक, क्षत और क्षयनाशक, खांसी, श्वास, घोर अतिसार नाशक, कामाग्नि सन्दीपक, बवासीर, संग्रहणी, प्रमेह और कफनाशक तथा वाग्वर्द्धक

76

कामेश्वरो मोदकः (२)

भै.र.। ग्रह.

आधि व्याधि हर, क्षय नाशक, कुष्ठ नाशक, वृंहण, सौन्दर्य वर्द्धक, कामाग्नि दीपक, खांसी, श्वास और कफरोग नाशक

77

कारव्यादि गुटिका

यो. र. । अरु.

अरुचि

78

कार्पासमज्जागुटी

 

वृ. नि. र. । संग्रह., वै. र. अर्शो.

बवासीर

79

कासकर्तरीगुटिका

वृ. यो. त. । ७८ त.

खांसी, श्वास, यक्ष्मा और हिचकी

80

कासहरीवटी

व्या. यो. सं.

कास

81

कासादिहरीवटी

व्या. यो. सं.

कास, श्वास

82

कासीसादिगुटी

वृ. नि. र. । मुख.

दंत कृमी, शूल

83

कुबेराक्षवटी

वृ. नि. र. । शूल.

शूल

84

कुमारिकावर्णितः

भै. र. नेत्र., वे. से., पृ. मा; च. द.

नेत्ररोग

85

कुमारीवटी

भै. र.। परिशि.

स्नायुरोग, अग्निमांद्य

86

कुलवटी

र. रा. सु.। सनि.

सन्निपात रोग

87

कुलिकाविवटिका

भै. र. । विष.

विष, विषमज्वर

88

कुष्ठादिवर्तिः

च. स. चि. अ. ३०

कुष्ठ

89

कृमिघातिनी गुटिका

र. रा. सु. । क्रिमि.

कृमी

90

कृष्णाद्यो मोदकः

भै. र. । श्ली.

श्लीपद

91

खदिरादि गुटिका (१)

यो. र. । मु. रो.

मुखरोग

92

खदिरादि गुटिका (२)

यो. र. । कासे

कास, श्वास

93

खदिरादिगुटिका (३)

वृ. यो. त. । १२८ त; ग. नि.

जिव्हा, होठ, दांत, सुंह, गले और तालुके समस्त रोग

94

खदिरादिगुटिका (४)

ग. नि. । गुटि.

कफप्रमेह, हिचकी, अग्निमांद्य, अरुचि और पीनस

95

खदिरादिगुटिका (५)

ग. नि. । गुटि.

मुखरोग, वाजीकर

96

खदिरादिगुटिका (६)

ग. नि. । गुटि.

कुष्ठ

97

खदिरादिगुटिका (७)

च. सं. । चि. अ. २६; वा. भ.

दंतशूल, विभ्रंश, शौषिर्य, कृमि, जड़ता दुर्गन्ध, मुखका कड़वापन, रतुवत आना, पकना, गलशोष, दाह, गला पढ़ जाना और दांत, मुंह तथा गले का पकना आदि

98

खदिरादिगुटिका (८)

ग. नि. । गुटि.

मुखरोग

99

खजूरादि गुटिका

वृ. नि. र. । तृष्णा.

पिपासा, मोह और रक्तपित्तका

100

गगनगर्भा घटी

र. र. स. उ. स. । अ. २१

कफ युक्त वात

101

गगनगर्भिता वटी

र. का. घे. । अ. ३७

वात कफ

102

गगनादि वटी

र. सा. सं. वातव्या.

वात, पित्तरोग, क्षय, भ्रम, मद, कफ, शोष, दाह, तृष्णा

103

गन्धकवटी

र. सा. सं.। अजीर्ण,

अरुची, अग्निवृद्धी

104

गन्धकवटी

रसायनसार ५. ५१०

अजीर्ण, अतिसार, हैजा, संग्रहणी आदि

105

गन्धकवटी

वै. र.। अग्नि. मां.

कोठ बध्दता नाशिनी और अग्नि दीपिनी

106

गन्धकवटी

वै. र.। अग्निमा

अग्निप्रदीप्त

107

गन्धकादिवटी

हा.स.। स्था. ३.अ.४

विसूचीका

108

गुञ्जागर्भरसायनम्

यो. र.

उरुस्तंभ

109

गुञ्जारसेन्द्रवटी

भै. र.

 

110

गुडचतुष्टयःवटिका

यो. चिं. अ. ३

गुल्म, बवासीर और अग्निदोष नष्ट होते हैं।

111

गुडपिप्पलीमोदकः

भै.र.धन्वं.प्ली

यकृत् (जिगर), प्लीहा (तिली), पांच प्रकार के गुल्म रोग, सर्व प्रकारके उदररोग, जीर्णश्वर, शोथ और पांच प्रकारकी खाँसी

112

गुडपिप्पलीमोदकः

र.र.प्ली.

प्लीहा, ज्वर

113

गुडादि गुटिका

शा. सं.। गुटी.अ.

श्वास, कास

114

गुडादि मण्डूरम

र. का. धे. । पाण्डु

पांडुरोग

115

गुडादि मोदकः

यो. र. अ. पि. ग. नि.

पित्त, कफ, अग्निमांद्य

116

गुडादि मोदकः

वं.से.विरे.

ग्रहणी, पाण्डु, अर्श, और कुष्ठ

117

गुडूचीमोदकः

भा. प्र.। ज्व.

जरा, पालित्य, विषमज्वर, मोह, वातरक्त, नेत्ररोग, त्रिदोषनाशक

118

गुडूच्यादि मोदकः

वृ. नि. र.

क्षय, रक्तपित्त, पाददाह, रक्तप्रदर, मूत्राघात, मूत्रकृच्छ, वातकुंडलिका, प्रमेह, सोमरोग

119

गुडूच्यादिवर्तिः

च. सं. । ने. चि.

समस्त नेत्ररोग

120

गुणावतीवर्तिः

धन्व. । ग्र. चि.

दुष्टव्रण, नाडीव्रण

121

गुल्मवज्रिणी वटी

र. रा. सुं.

गुल्म, प्लीहा, अष्ठीला, यकृत, आनाह, कामला, पांडू, ज्वर, शूल

122

गुल्महरिवर्तिः

सु. सं. । उत्त. अ. ४२

अपान वायु, मलावरोध

123

गृहधूमगुटिका

यो. स. । समु. ३

जीर्णज्वर

124

गोक्षुरकादी वटी

यो.र.। प्रमे. चि.

प्रमेह, वातव्याधि, वातरक्त, मूत्राघात, मूत्र-दोष और प्रदर रोग

125

गोरक्षवटी

वृ. यो. त.। त. ८१; र. रा. सुं.; वै. र.; यो. र.; र. चं. । स्वरभेद०

स्वरभंग

126

ग्रहणीकपाटचटिका

यो.चिं.। गुटिका. ३

ग्रहणी, रक्तातिसार

127

ग्रहणीगजेन्द्रवटीका

भै.र.र . सा.सं.। ग्रह.

ग्रहणीरोग, ज्वरातिसार, शूल, गुल्म, अम्लपित्त, कामला, हलीमक, कण्डू (खाज), कुष्ठ, विसर्प, गुदभ्रंश और कृमि

128

ग्रहणी शार्दुलवटिका

भै.र.ग्र.चि

ग्रहणी, अतिसार, प्रवाहिका

129

ग्रहनाशिनी गुटिका

र.र.स.बा.री

ग्रहदोष

130

घनादिगुटिका

वृ.नि.र.| कास. वै.जी.|वि.३.

श्वास, कास

131

चतुःसमा गुटिका

वं. से.; यो. र.; मा. प्र. खं. २; र. रा. सुं । अति.; वृं. मा. । कासा.

त्रिदोषज अतिसार, अफारा, अनेक प्रकारकी विसूचिका (हैज़ा) कृमि और अरुचिनाशक तथा अग्निवर्द्धक

132

चतुस्समो मोदकः

 

वं. से.; वृं. मा, । अर्श.; हा. सं.। स्था. ३ अ. ११; यो. त. । त. २३; वृ. यो. त.। त. ६९

अर्शनाशक और बलवर्द्धक

133

चन्द्रकलावटी

वृ. नि. र. यो. र. । प्रमे. यो. चि. म. । गुटिका.; र. का. धे०

प्रमेह

134

चन्द्रप्रभागुटिका

र. रा. सुं. । मेह र. र. स. उ. खं. अ. १७हा. सं. । स्था. ३ अ. ५८

प्रमेह

135

चन्द्रप्रभागुटिका

ग.नि.गुटि. ४

६ प्रकारकी बवासीर, मयहुर गुल्म, शोष, क्षय, कामला, मर्मगतनाड़ी व्रण(नासूर), जलोदर, जीर्णज्वर, विद्रधि, भगन्दर, राजयक्ष्मा, कफज-पित्तज और वातज पाण्डु रोग, शुक विकार, ग्रन्थि, अर्बुद, श्लीपद, प्रमेह, शुक्र-क्षय, अश्मरी इत्यादि

136

चन्द्रप्रभागुटिका

भा. प्र.; वं. से.; । वा. र.; र. का. धे.; र. चं.; भै. र.; धन्वं. । अर्श.; रसे. चि. म. । अ.९

ज्वरातिसार, ग्रहणी विकार, ६ प्रकारको अर्श, भगन्दर, कामला, पाण्डु, वात-पित्त-कफज अनेक रोग, नाड़ीव्रण, मर्म-स्थानका व्रण, क्षत, क्षय, गृध्रसी, राजयक्ष्मा, हस्तिमेह, शुकक्षय, अश्मरी, मूत्रकृच्छ्र, शुक्रलाव, और उदर रोगों, २० प्रकार के प्रमेह, शुक्रदोष, वलि, पलित

137

चन्द्रप्रभावटी

 

शा. सं. । म. ख. अ. ७; नपुं. मृ.। त. ७; भै. र.; वै. र. । प्रमे. चि.; वृ. यो. त.। त. १०३

प्रमेह, मूत्रकृच्छ्र, मूत्राधात, पथरी, मलावरोव, अफारा, शूल, मेहनग्रन्थि (मूत्रग्रन्थि), अर्बुद (रसौली), अण्डवृद्धि, पाण्डु, कामला, हलीमक, अन्त्रवृद्धि, कटिशूल, श्वास, खांसी, विचर्चिका, कुष्ठ, अर्श (बवासीर), खुजली, प्लीहा, भगन्दर, दन्तरोग, नेत्ररोग, स्त्रीयोंकी आर्तव पीड़ा, पुरुषों के शुक्रविकार. मन्दाग्नि, अरुचि, वात, पित्त और कफनाशक तथा बल्या, वृष्या और रसायनी है।

138

चन्द्रप्रभावटिका

र. रा. सुं.; र. चं.; र. का.धे.; यो. र.। अति; वृ. यो. त. । त. ६९; र. मं. । अ. ६

त्रिदोषज ज़्वरातिसार

139

चन्द्रप्रभावटी

र. का.धे. । कुष्ठ.

श्वित्र, पामा

140

चन्द्रप्रभावटी

र.रा.सु.;र.सा.सं.

प्रमेह

141

चपलांमण्डूरम्

ग. नि., च. द.; र. का. धे. । शूला.

परिणाम शूल

142

चिश्राक्षारादिशंखवटी

यो. र.; गुल्म; वृ. नि. र.

गुल्म, शूल, अजीर्ण, विसूचिका, अग्निमांद्य

143

चित्रकगुटिका

ग.नि.। गुटिका. ४

मण्डल कुष्ठ, खुजली, बवासीर और ग्रहणी

144

चित्रकादिगुटिका ।

च. सं. । चि. अ. १९; भै. र.; यो. र.; वृं. मा.; च. द.; वं. से.; भा. प्र.; । ग्रहणी; ग. नि. । गुटि. ४; वृ. यो. त. । त. ६७, यो. त. । त. २२; शा. घ.

आम पाचक और अग्निदीपक

145

चित्रकादिगुदी

वृ.यो.त.त.१३०

पीनस

146

चित्रकादि‌द्मोदकः

हा. सं. । स्था. ३ अ. ७

परिणाम शूल

147

चित्रकादिवटकः

वृ.नि.र.। शूल.

हृत्शूल, पसलीका दर्द, आम शूल, अरुचि और 80 प्रकारके वातज रोग

148

चिन्तामणिगुटिका

र. का. धे.। ज्व.

जीर्ण ज्वर

149

चिन्तामणिरसगुटिका

यो. चि.

आमज्वर, सन्निपातज व्याधि

150

चिन्तामणिवटिका

र. का. धे.

जीर्णज्वर

151

चूलिकावटी

भै. र. । उद.

शोथोदर, कामला, पांडू, आमवात, हलीमक, भगंदर, कुष्ठ, प्लीहा, गुल्म

152

चतुःसममण्डूरम्

भै. र.; धन्वं. । शूल.

शूल अग्निमांद्य, खांसी, श्वास, अम्लपित्त, ज्वर, उन्माद, अपस्मार, प्रमेह, समस्त उदर विकार और अजीर्णादि

153

जयन्तीवटी

र.सा.सं.| ज्वर;

र.चं. | रसा

विषमज्वर, ज्वर, शीतज्वर, ज्वरयुक्त रक्तपित्त, कास, पांडू, शोथ, पथरी, मूत्रकृच्छ, काकण कुष्ठ, प्रमेह, त्रिदोषज गुल्म, भगंदर, ग्रहणी, त्रिदोषज रक्तपित्त

154

जयन्तीवटी

र.र.स.।उ.ख. अ.२९

कुष्ठ रोग

155

जयवटिका

रसा. सा. । ज्व.

ज्वर, श्वास, कास, मंदाग्नी, बवासीर, पांडू, भगंदर

156

जयागुटिका

र.सा.सं.;र.रा.सुं., र.चं.। कास.

कास, श्वास, क्षय, गुल्म, प्रमेह, विषमज्वर, अजीर्ण, ग्रहणी, शूल, पांडू, अपान वायु अवरोध, हृदयशूल, वातव्याधि, गलग्रह, अरुची, अतिसार, सूतिकारोग

157

जयागुटी

र. र. स. । उ.खं। अ.२९

क्षय, कुष्ठरोग

158

जयादिवटी

आ.वे. वि. । अ.७९

कमर का दर्द, जरायुशूल, वंध्यत्व, कष्टरज

159

जयावटी

 

 

र. स. क. । वि. ५; र. चं.। रसा.; र. सा. सं.। ज्वर; रसें. चिं. । अ. ८; आयु. वे. प्र.। अ. १

योगवाही

160

जातीफलादिवटी

वृ. नि. र.; वै. र. । अति.

अतिसार

161

जातीफलादिवटी

 

यो. त. । त. ८०; पृ. यो. त. । त. १४७

वीर्यस्तंभन

162

जातीफलाद्या वटिका

 

र. सा. सं., भै. र., र. र., । ग्रह०

आमरोग, वातजरोग, अग्नीदीपन, कास, आम्लपित्त, संग्रहणी, अतिसार, श्वास, पांडू, अरुची, कोष्ठविकार

163

जात्यादिगुटिका

ग. नि.। मुखरो.

मुंह की दुर्गन्ध, तथा दन्त, होठ, मुख, जिह्वा और तालुके रोग

164

जीरकादिमोदकः

 

यो. र.; भा. प्र. । म. ख. स्त्री.

योनिरोग

165

जीरकादि‌द्मोदकः

भै. र. । ग्रह.

ग्रहणी रोग, आमाच्छादित पित्तरोग, अग्निमांद्य, अतिसार, रक्तातिसार, विषमज्वर, पेट में अत्यधिक गुड़गुड़ाट शब्द होना, अम्लपित्त, एक दोषज द्विदोषज और सन्निपातज उदर रोग, शूल और अरुचिका

166

जीरकादि‌मोदकः (बृहद)

भै. र.। ग्र.

ग्रहणी

167

जीरकाद्या गुटिका

ग.नि.। गुटिका.

अजीर्ण, अलसक, विसूचिका और अफारा

168

जीरकाद्यो मोदक

भै.र.|स्त्री

समस्त स्त्रीरोग, विशेषतः सूतिका रोग और संग्रहणी

169

जीवकाद्यो मोदकः

च.चि.। कासा.

शुक्र दोष, रजोविकार, शोष, खांसी और क्षत श्रीणादि

170

जैपालवटी

वै. र. र. रा. सुं. भा. प्र. । ज्वर.

जीर्णज्वर

171

ज्वरघ्नी वटी

भा. प्र. । म. खं. ज्वर; वृ. नि. र.। ज्वर; वृ. यो. त. । त. ५९ । र. र. प्र.

शीत ज्वर

172

ज्योतिष्मतीगुटिका

वैद्यामृत । वि. १८

समस्त वातरोग

173

ज्वरनाशिनी गुटिका

र. स. क. । उला. ५

ज्वर

174

तक्रवटी

भै.र.| ग्रहणी

शोथ, संग्रहणी, मंदाग्नी, पांडू

175

ताम्रेश्वरगुटिका

 

 

र. सा. सं.; र. चं.; धन्वं.; र. रा. सुं. । प्लीहा.

प्लीहा, यकृत, गुल्म, आमवात, अर्श, उदररोग, मूर्च्छा, पांडू, हलीमक, ग्रहणी, अतिसार, यक्ष्मा, शोथ

176

तारकेश्वरगुटिका

र. र. र. खं. । अ. ५

कुष्ठ

177

तारसुन्दरीवटी

र. सा. । १. २४

वृष्य, वाजीकर, वलीपलित

178

तारामण्डूरबटकाः

ग. नि.; भै. र. । शूल

पक्तिशूल, कामला, पांडू, शोष, अग्निमांद्य, अर्श, ग्रहणी, कृमिरोग, गुल्म, उदररोग, अम्लपित्त, स्थूलता

179

तालकादिगुटिका

र. रा. सुं. । वा. व्या.

प्रसूतीरोग, वातव्याधी, अग्निमांद्य, संग्रहणी, कफ, विषमज्वर, शीतज्वर

180

तालकादिवटी

र. चं.। शी. पि.

कुष्ठरोग

181

तालवटीका

र. चं। रसा.

वृष्य

182

तालीसादिगुटिका

यो.चि. अ.३०

पीनस, स्वरभंग, कफज अरुची

183

तालीसादिगुटिका

 

 

वं. से.; च. द.; र. र. । राजय.; वृं. मा; भै. र. । कासा.

रुचीवर्धक, पाचक, कास, श्वास, ज्वर, वमन, अतिसार, शोथ, अफारा, संग्रहणी, प्लीहा, पांडू

184

तालीसाद्या गुटिका

 

 

ग. नि. । गुटि., वृ. नि. रे.। सं.

अर्श, शूल, पानात्यय, छर्दि, प्रमेह, विषमज्वर, गुल्म, पाण्डु, सूजन, हृद्रोग, ग्रहणी, खांसी, हिचकी, श्वास, अरुचि, कृमि, अतिसार, कामला, अग्निमांद्य, मूत्रकृच्छ्र, और शोथ

185

तिलादिगुटिका

भा. प्र. खं. २; वृं. मा.; बं. से. । शूल

शूल

186

तिलादिवटी

वृ. नि. र. । शूल.

अजीर्ण, परिणामशूल

187

तृष्णाघ्नी गुटी

यो. र. । तृ.

तृष्णा

188

तेजोवयादिगुटिका

वृ. यो. त. । त. १२८

समस्त गल रोग

189

त्रिकटुकादिगुटी

यो.चि.। मिश्रा.

शून्यता, बधिरता

190

त्रिकटुकादिमोदकः

हा. सं.। स्था. ३ अ. ११

बवासीर, अग्निदिप्त

191

त्रिकटुकाद्यो मोदकः

भा. प्र. । प्रमेह.

प्रमेह

192

त्रिकण्टकाद्यो मोदकः

भै. र. । वाजी,

वाजीकर

193

निजातगुटिका

ग.नि.। गुटिका.

कंडू

194

त्रिजातादिगुटिकाः

 

 

वृ. नि. र. । कास.

वृष्य (वीर्यवर्द्धक) हैं और रक्तपित्त, खांसी, श्वास, अरुचि, वमन, मूर्च्छा, हिचकी, मद, भ्रम, क्षतक्षीणता, स्वरभंग (गला बैठना), प्लीहा (प्लीहा) ऊरुस्तम्भ, शोथ, रक्त-थूकना, हृदय और पसलीका दर्द, तथा ज्वरका नाश करती हैं

195

त्रिपुरभैरवीगुटी

वृ.नि.र.।श्वास.

कफज विकार

196

त्रिफलादिगुटिका

 

 

वा. म. । उत्त. अ. २२

कण्ठ, ओठ, तालु और गलेके कष्टसाध्य रोगोंका और विशेषतः रोहिणी मुखशोष तथा मुखको दुर्गन्धका नाश

197

त्रिफलादिगुटिका

यो. र. । कुष्ठ.

कुष्ठ, दाद, किलासकुष्ठ, पलित

198

त्रिफलादिगुटिका

वृ.नि.र.। संत्र.

अर्श, गुल्म, अग्निमांद्य, चर्मरोग, मूत्रकृच्छ, हृद्रोग, ज्वर, शूल, विषविकार

199

त्रिफलादिमोदकः

वृ. नि. र. । यातव्य.

शूल, अरुची, खांसी, श्वास, वातज्वर

200

त्रिफलादिमोदकः

शा. सं. । खं. २; यो. चि. म. । अ. ३

कुष्ठ, शिरोरोग, नेत्ररोग, मन्यारोग, पृष्टरोग

201

त्रिफलादिवटिका

ग.नि. श्वय.

सुजन, पांडू, भगंदर

202

त्रिफलादिवटी

आ. वे. वि. । रसाय. अ. ८५

शुक्र अल्पता, रक्तशुद्धी, अग्नीवृद्धी, बलवृद्धी, इंद्रिय शैथिल्य

203

त्रिफलाद्या गुटिका

ग. नि.। परि. गुटि.

वमन, राजयक्ष्मा, रक्तपित्त, खांसी, ज्वर, हृद्य

204

त्रिफलाद्यावटकाः

ग. नि.; यो. र.; वं.से.। कु.

नेत्ररोग

205

त्रिवृतादिगुटिका

 

 

भै. र.; वृ. नि. र.; वै. र.; ग. नि; वं. से.;र. र. । उदावर्त्त.

मलावरोध

206

त्रिवृतादिमादकः

भै. र. । परि.

मस्तिष्क रोग, वातज पित्तज और कफज स्नायु रोग, ग्रहणी, अग्निविकार (अग्नि-मांद्यादि), नपुंस्कता, जीर्णज्वर, तथा रज और वीर्य दोष नष्ट होते हैं।

207

त्रिवृतादिमोदकः

भै. र.  अग्नि.

अग्निमांद्य

208

त्रिवृतादिमोदकः

च.सं.क.अ.७

त्रिकशूल, वेक्षणशूल, हृदयशूल, बस्तिशूल, उदररोग, अर्श, प्लीहा, हिचकी, खांसी, अरुचि, व्यास, कफ और उदावर्त रोग नष्ट होता है।

209

त्रिवृतादिमोद‌कः

 

बं. से.; वृं. मा. । रक्तपित्ता.

संनिपाताज रक्तपित्त, ज्वर

210

त्रिवृतादिमोदकः

च. स. । कल्प.

विरेचन

211

त्रिवृतादि‌मोदकः

ग.नि.। ज्वर.

सन्निपात

212

त्रिवृतादिवटिका

ग.नि.उदावर्त्त.

अफारा

213

त्रिवृदष्टकमोदकः

 

सु. संहिता। सूत्र. अ. ४४

बस्तिकी पीड़ा, तृषा, ज्वर, छर्दि, शोष और पाण्डु रोग नष्ट होता है। पित्तकफज रोग, विरेचन, विषघ्न

214

त्रोटहरीगुटिका

ग.नि.। परि.गुटि.

कफज रोग, वातज प्रमेह

215

त्र्यूषणादिगुटिका

वं. से. । पाण्डु

पांडू, कृमी, कुष्ठ, प्रमेह, अर्श, ग्रहणी, सुजन, भगंदर, श्वास, कास, प्लीहा, गुल्म, उदर

216

त्र्यूषणादिगुटिका

र. र. । शिरो.

मुखरोग, शिरोरोग, भ्रम, नेत्रपटलगत रोग, तिमिर, पिष्टक, शुक्ररोग, अर्बुद, पलितरोग, वाजीकर

217

त्र्यूषणादिमण्डूरवटिकाः

भा.प्र.सं.२०गरा

पांडू, कुष्ठ, शोथ, उदर,उरुस्तंभ, कफ, अर्श, कामला, प्रमेह, प्लीहा

218

त्र्यूषणादिवटी

वृ.नि.र.। अरुचि.

अरुची, अग्निमांद्य

219

दन्तीमोदकः

सु. सं. । सू. अ. ४४

ग्रहणी, पांडू, कुष्ठ, अर्श

220

दन्त्यादिगुटिका

यो. र. । गुल्म.

रक्तगुल्म

221

दशसारयटी

रसें. सा. सं. । वा. व्या; र. रा. सु.; धन्वं. । वा. व्या.

समस्त वात रोग

222

दाडिमादिगुटिका

वा.भ.। चि. अ. ३

रोचक, दीपन, स्वरको सुधारने वाली, पीनस खांसी तथा श्वास नाशक

223

दाडिमीवटी (१)

वृ. नि. र.; वै. र. । अति.

पक्वातिसार

224

दाडिमीवटा (२)

वृ. नि. र.; वै. र. । अति.

पक्वातिसार

225

दुर्नामकुठाररसः (मोदक)

वै. रह. । अर्श.

बवासीर

226

द्रवन्तीनागवटी

यो. र. । गुल्म; वृ. यो. त.। त. १०५

अग्निमांद्य, प्लीहा, यकृत, गुल्म

227

द्राक्षादिगुटिका (१)

यो. र; वं. से.। विसर्प; वृ. यो. त.। त. १२२; यो. चिं. । अ. ७; यो. त. । त. ६४

अम्लपित्त, कण्ठ और हृदयकी दाह, तृष्णा, मूर्च्छा, भ्रम, मन्दाग्नि और आमवात

228

द्राक्षादिगुटिका (२)

वृ. नि. र.। ग्रह.

पित्तज ग्रहणी, पाण्डु, कामला, तृषा, भ्रम, मूर्च्छा, हिचकी, उन्माद, अपस्मार, वातपित्तज रोग, और कुष्ठ

229

धनञ्जयवटी (१)

यो. र. । कासा.

कास

230

धनञ्जयवटी (२)

 

 

वृ. नि. र.; यो. र. । अजी.; वृ. यो. त. । त. ७१

अजीर्ण, शूल, विबंध, आध्मान, ग्रहणी

231

धातक्यादिमोदकः

वृ. नि. र. । अति.

अतिसार

232

नक्तान्ध्यहरीवर्तिः

र. र. स. । उ. अ. २३

नक्तान्ध्य

233

नयनसुखावर्तिः

भै. र.; वृं. मा.; धन्व. । नेत्र.

तिमिर, अर्म, काच, अश्रूस्राव, पटल

234

नयनामृतवटी

वै.र. | नेत्र

मांसवृद्धी

235

नवज्वरहरीवटी

वृ. यो. त. । त. ५९; भा. प्र. ख. २; र. रा. सुं. । ज्वर.

नवीन ज्वर

236

नवनेत्रदावर्तिः

र. र. स. । उ.ख.अ. २३, र. च.। नेत्र.

अभिष्यन्द, अधिमन्थ, सव्रणशुक्ल, कुकूणक, तिमिर, पटल, काच, और विशेषतः कण्डु

237

नवाङ्गीवर्तिः

ग. नि. । नेत्ररोगा.

क्लेद, उपदेह, कंडू, कफज नेत्ररोग

238

नागरादिगुटिका

वं. से. । नेत्र.

नेत्रपीडा

239

नागराद्यो मोदकः (१)

वं. से. । अति.

कफज अतिसार, कृमि, शोथ, पांडू, प्लीहा, गुल्म, उदररोग, ग्रहणीदोष, अर्श, अग्निदिप्त

240

नागराद्यो मोदकः (२)

भै. र. । अर्शो.; यो. चिं. । अ. ३

वृष्य

241

नागादिवटिका

र.चं. | विष

महाश्वास

242

नागार्जुनयोगः

(त्रिफलादिगुटिका)

च. द.; वै. र. । अर्श.

अर्श, गुल्म, अग्निमांद्य, चर्मरोग, मूत्रकृच्छ, हृद्रोग, ज्वर, शूल, विष

243

नागार्जुनवटी

र. र. सं.

कुष्ठ, विचर्चिका, दाद

244

नागार्जुनी गुटिका

र. स. क.; र. का. धे.

कफवातज रोग

245

नागार्जुनी गुटिका

ग. नि. । नेत्रा.

वृश्चिकविष

246

नागार्जुनी वर्तिः

र. का. धे.; र. र.; धन्व.; वं. से.; भै. र.; वृं. मा.; च. द; ग. नि. । नेत्ररोगा.

तिमिर, पटल, नेत्रपाक

247

नागेन्द्रगुटिका

र. र.; र. का. धे| मेह.

प्रमेह

248

नेत्रवर्तिः

आ. वे. वि. । चिकि. अ. ७३

नेत्रपीडा

249

नेपालादिवर्तिः

यो. र. । नेत्र.

कफज तिमिर

250

निकुम्भाया गुटिका

ग. नि. । गुटि.

गुल्म, प्लीहा, अग्निमांद्य, हृद्रोग, पाण्डु और ग्रहणी विकार

251

निम्बादिगुटिका

र. का. धे. । पाण्डु.

कामला, पांडू, ज्वर

252

निम्बादिवर्तिः

यो.र.|व्र.

व्रण

253

निशादिवटी

वा.भ. | कुष्ठ

कुष्ठ

254

निशादिद्वर्तिः

र.र.|भगंदर.

भगंदर, नासूर

255

नीलाब्जाद्या गुटिका

ग. नि. तृष्णा.; रा. मा. । छर्दितृषा.

तृष्णा

256

पश्ञ्चकोलाद्या गुटिका

ग. नि.; वृ. मा. । मुखरो.

कंठरोग

257

पञ्चाननवटी (1)

वृ. यो. त. । त. ९३

आमवात, वातव्याधी

258

पञ्चाननवटी (2)

भै. र.; र. र. । अम्लपित्ता.

अम्लपित्त, परिणाम शूल, शोथ, पाण्डु, अफारा, प्लीहा, गुल्म, उदररोग, अग्निप्रदीप्त, रसायन

259

पञ्चाननवटी (3)

भै. र. र. चं. । अर्श.; र. सा. स. । अर्श.

अर्श

260

पञ्चानना वटी

भै. र.; र. सा. सं., र. रा. सुं.; र. र. । पाण्डु.

शोथ, पांडू

261

पञ्चामृतवटी

र. सा. सं.; र. र.; र. रा. सु. । अजीर्ण.

अग्निमांद्य

262

पथ्यादिगुटिका (१)

वा. भ. । चि. अ. ३०; वृ. यो. त. । त. ७८; वं. से. । कासा.

श्वास, कास

263

पथ्यादिगुटिका (२)

वै. जी. । विला. ४

अर्श, पांडू, ज्वर, कुष्ठ, कास, श्वास, प्लीहा

264

पथ्यादिमोदकः(१)

वृ. नि. र. । अर्श.

अर्श

265

पथ्यावटकः

ग.नि. परिशिष्ट गुटिका. वं. से. । कुष्ठ

कोथ, कुष्ठ

266

पानीयवटिका (१)

र. रा. सुं.; भै. र. । ज्वरा.

जीर्णज्वर, ग्रहणी, कंपज्वर, ज्वारातीसार, मंदाग्नी, कामला, संग्रहणी, कास, श्वास

267

पानीयवटिका (सिद्धफला) (२)

र. र.; र. रा. सुं.; भै. र. । ज्वरा.

सन्निपाताज ज्वर, दाह, कास, श्वास, हिक्का, मलावरोध, अश्मरी, मुत्राघात

268

पानीयभक्तवटी (१)

वं. से. । रसायन.

आमवात, अम्लपित्त, अग्निदिप्त

269

पानीयभक्तवटी (२)

भै. र. । अम्लपि.; र. र.; र. का. धे.; र. चि. म.; र. सा. सं. । ग्रह.; रसें. चि. म. ।अ. ९

अम्लपित्त, अरुचि, कष्टसाध्य संग्रहणी, अर्श, कामला, भगन्दर, शोथ, गुल्म, परिणामशूल, अग्निमांद्य, कुष्ठ, पलित, वलि (शरीरकी झुर्रियां) श्वास, खांसी और पाण्डुका नाश होता तथा जठराग्निकी वृद्धि

270

पानीयभक्तवटी (३)

भै. र.; र. चि.; र. सा. सं.; र. रा. सुं.; र. चं.; वं. से.; र. का. धे. । रसायन.

पक्तिशूल, त्रिदोषज अम्लपित्त, वमन, हृदयशूल, पार्श्वशूल, बस्ति कुक्षि और गुदाका दर्द, खांसी, श्वास, कुष्ठ, आमजन्य ग्रहणी विकार, यकृत्, प्लीहा, उदररोग, यक्ष्मा, विष्टम्भ, आम, दुर्बलता, और अग्निमांद्य

271

पानीयभक्तवटी (४)

च. द.। अग्निमां.

अग्नी प्रदीप्त

272

पानीयभक्तवटी (५)

व. से. । रसायना.

आमवात, ग्रहणी, गुल्म और शूल

273

पानीयभक्तवटी (६)

व. से. । रसायना.

संग्रहणी, आमवात, गुल्म, शूल

274

पानीयभक्तवटी (७)

व. से. । रसायना.

वातकफज रोग, अग्निमांद्य, ज्वर, वमन, आमवात, परिणामशूल

275

पानीयभक्तवटी (८)

व. से. । रसायना.

ग्रहणी, अम्लपित्त, शीतपित्त, अर्श, अग्निमांद्य, प्लीहा, अरुचीका

276

पारद्गुटिका

र. र. रसाय. ख. । उपदे. ७

वीर्यस्तंभन

277

पारदादिगुटिका (रसादिगुटिका)

वै. र.; र. रा.सु.। दाह; वृ. यो. त. । त. ८७; र. चं. । दाह.

त्रिदोषज दाह

278

पारदादिवटी (१)

सिद्धभेषजमणिमाला । ग्रहण्य.

संग्रहणी

279

पारदादिवटी (२)

र. रा. सु.; वृ. नि. र. । ग्रहणी.

ग्रहणी, शूल, शोथ, अतिसार

280

पारदादिवटी (३)

वृ. नि. र. । श्वास.

कफ, मंदाग्नी, श्वास, कास, अफारा, प्रतिनाह

281

पारदादिवटी (४)

र. रा. सु. । कास.

कफ, कास, श्वास, शीतवात, शूल

282

पालङ्कयादिगुटिका

वै. म. र. । पट. १६

तिमिर

283

पारावतपुरीषयोगः (गुटिका)

र. चं. । विसर्पाद्यधि.; यो. र. । स्नायु.

स्नायुक

284

पिण्याकादिगुटिका

वै. म. र. । पटल ९

गुल्म, उदर, अग्निमांद्य, अरुची, शूल

285

पिप्पलीमोदकः

शा. ध. । ख. २ अ. ७; वै. र. । ज्वर.

धातुगत ज्वर, श्वास, खांसी, पाण्डु, धातुक्षय और अग्निमांद्य

286

पिप्पल्यादिक्षारगुटिका

ग. नि. । गुटि.

श्वास, कास, गलरोग

287

पिप्पल्यादिगुटिका

वै. र.; यो. र.; वं. से.; वृ. नि. र.; । कासा

श्वास, कास

288

पिप्पल्यादिगुटिका

यो. र.; वं. से.; यो. त.; वृ. नि. र.; वृ. मा. । ने. रो

अर्म, तिमिर, काच, कंडू, शुक्र, अर्जुन, अजकाजात,

289

पियालादिमोदकः

ग. नि. । बालरो.

बालरोग

290

प्रकाशिका गुटिका

ग. नि. । नेत्ररो.

नक्तांध्य, दिवान्ध्या

291

प्रचेतानामगुटिका

यो. चि. म. । अ. ३

भूतोन्माद

292

प्रभाकर: वटी

भै. र. । हृद्रोगा.

हृद्रोग

293

प्रभावती गुटिका

र. चि. म. । स्तब. ९

विरेचन, उदर, गुल्म, प्लीहा,पित्तरोग

294

प्रभावतीगुटिका (वृकोदरीवटी)

र. चे.; र. रा. सु.; र. र. स. । वातरो.

समस्त वातजरोग, कफजरोग, आमविकार, मन्दाग्नि, ग्रहणी और अजीर्ण

295

प्रभावती वटिका

ग. नि.। परिशिष्ट गुटिका.

वात व्याधि, हर्षवात, १८ प्रकारके गुल्म, २० प्रकार के प्रमेह, हृद्रोग, कुष्ठ, शूल, गलग्रह, श्वास, ग्रहणी, पाण्डु, अग्निमांद्य और अरुचि

296

प्राणदागुटिका

भै. र.; वं. से.; वृं. मा.; च. द. । अर्श.; ग. नि. । गुटिका.

वातज, पित्तज, कफज और सन्निपातज अर्श तथा रक्तार्श और सहजार्श, पानात्यय, मूत्रकृच्छ्र, वातरोग, गलग्रह, विषमज्वर, मन्दाग्नि, पाण्डु, कृमि,, हृद्रोग, गुल्म, शूल, श्वास, कास, अम्लपित्त, अग्निमांद्य

297

प्राणप्रदो मोदक:

 

वृ. यो. त.। त. ६९; वृ. नि. र.; यो. र.। अर्श.

कास, श्वास, मद, अग्नि-मांद्य, अर्श, प्लीहा और प्रमेह

298

प्लीहारिवटिका

आ. वे. वि. । चि. अ. ६

प्लीहा, कष्टसाध्य गुल्म

299

फलत्रयगुटी

वृ. नि. र. । श्वासकर्म.

श्वास, कास

300

फलत्रिकाद्यो मोदकः

 

ग. नि. । परिशिष्ट गुटिका ४

पसलीका दर्द, अरुचि, खांसी और वातज ज्वर

301

बल्लीतर्वादिगुटिका

ग. नि. । वात. व्या.

सर्वांगगतवायु

302

बिल्वादिगुटिका

वृ. नि. र. । शूला.; व. से. । शूला.

वातज शूल

303

बीजपूरादिगुटिका

यो. चि. । अ. ३

कफ

304

वृद्धदारुमोदकः

वृ. नि. र. । संग्रहणी रा.

अर्श

305

बोलवटिका

र. चं.। सूतिका.

क्षय, पांडू, प्रसूतरोग

306

ब्रह्मवटी (१) (ब्रह्मप्रभावटी)

र. रा. सु. । सनिपाता.; र. का. धे. । ज्वरा. १

सन्निपात

307

ब्रह्मवटी (२)

र. सा. सं. अपस्मारे

अपस्मार

308

ब्रह्मवटी (३)

र. र. । उदरा.

६४ प्रकार के उदररोग

309

भक्तपाकवटी(भुक्तपाकवटी)

(बृहत)

र. सा. सं.; र. रा. सु.। अजीर्णा.

मलबंध, कफप्रधानसन्निपात, आम, अग्निमांद्य, विषमज्वर, शूल

310

भक्तवारिगुटिका

व. से. । परिणाम शूला.

पक्तिशूल, त्रिदोषज अम्लपित्त, वमन, हृदयशूल, पार्श्वशूल, बस्ति कुक्षि और गुदाका दर्द, खांसी, श्वास, कुष्ठ, आमजन्य ग्रहणी विकार, यकृत्, प्लीहा, उदररोग, यक्ष्मा, विष्टम्भ, आम, दुर्बलता, और अग्निमांद्य

311

भक्तविपाकवटी

(भक्तपावकगुटिका)

रसे. सा. सं.। अजीर्णा.; र. र. । रसायना. र. च. । अजीर्णा.

अग्नीप्रदीप्त

312

भुक्तोत्तरीयावटी

र. रा. सु. । अजीर्णा.

आमविकार, मंदाग्नी, कब्ज, वातकफज शोथोदर, प्रमेह, अजीर्ण, शूल, सन्निपात ज्वर

313

भद्रमुस्तादिवटिका

व. से. । मुखरोगा.; वृ. नि. र. । मुख.; यो. र.; भा. प्र. । दन्त.; वै. र. । मुख.; वृ. यो. त. । त. १२८

चल-दंत

314

भल्लातकमोदकः

 

 

व. से.; । उदरा; वृ. यो. त. । त. १०५; वृ. नि. र.; वृ. मा.; ग. नि. । उदरो.

प्लीहा

315

भल्लातकवटकः

हा. सं.। स्था. ३ अ. ११

अर्श, उदररोग, शूल. गुल्म, कृमि, पाण्डु और क्षय

316

भस्मवटी

र. रा. सु. । अजीर्णा.

अजीर्ण, हृद्रोग, गुल्म, कृमि-जन्य रोग, प्लीहा, अग्निर्माण, आमवात, शूल, अति-सार, संग्रहणी, जलोदर, अर्श

317

भागोत्तरगुटिका

यो. चि. । अ. ३; भै. र.; यो. र.; र. का. धे..; र. सा. स.; धन्व.; वै. मृ.; वै. र. । कासा.; यो. त. । त. २८; र. र. स. । अ. १३; र. रा. सु.; र. चं. । श्वासा.

५ प्रकार के कास, ऊर्ध्व श्वास

318

भार्ग्यादिगुटिका

ग. नि. । गुटिका.

श्वास, कास, अरुची

319

भास्करामृताभ्रवटी

भै. र. । अम्लपित्ता.

साधारण शूल, अन्नद्रव शूल, परिणाम शूल, छर्दि, हुल्लास, अरुचि, तृष्णा, कष्टसाध्य खांसी, हृदग्रह, कामला, रक्तपित्त, राजयक्ष्मा, दाह, शोथ, भ्रम, तन्द्रा, विस्फोटक, कुछ, श्वास, मूर्च्छा, मन्दाग्नि, यकृत्, प्लीहा और उदररोग

320

भास्वदवटी

वै. र. । शूला.

शूल, अपानावरोध

321

भीममण्डूरवटकः

वृ. यो. त. । त. ९५; यो. र.;व. से.; च. द.। परिणामशूला.; वृ. नि. र.; ग. नि. । शूला.; वृ. मा. । परिणामशूला.; र. का. धे. ।अ. २१

परिणाम शूल

322

भीमसेनवटकः

हा. सं.। स्था. ३ अ. ११

अर्श, पाण्डु, भगन्दर, ग्रहणी, शोष, शूल, आनाह, विबन्ध, गुल्म, कामला और अन्य कफजरोग

323

भुजङ्गीगुटिका

वृ. नि. र. । वातव्याधि.

वातव्याधि

324

भूनिम्बादिगुटी

वृ. नि. र. । पाण्डु.

पांडू

325

भेकराजरसादिमोदकः

वै. म. र. । पटल ९

पांडुरोग

326

भेदिनीवटी

 

भै. र. । उदरा.; र. का.धे। उदर.; रसे. चि. म. । अ. ९

उदररोग

327

भैरवीगुटिका

र. रा. सु.। ज्वरा.; र. का. धे। । आगन्तुक ज्वरा.; वृ. नि. । सन्निपाता.

सन्निपात ज्वर

328

भैरवीवटी

र. रा. सु. । अजीर्णा.

अग्निमांद्य, कास, श्वास, प्रतिश्याय, विष, ज्वर

329

भोगपुरन्दरीगुटिका

र. सं. क.। उल्लास ५; वृ. यो. त. । त. १४७

शुक्रस्तम्भक, बलमांस वर्द्धक और अत्यन्त वाजीकरण

330

भ्रमनाशिनीगुटी

व. से. । मूर्च्छा.

भ्रम

331

मण्डूरवटकः

व. से.; र. का. धे। । पाण्डु.

पाण्डु रोग, प्लीहा, अर्श, विषमज्वर, शोथ, संग्रहणी, कुष्ठ और क्रिमि रोग

332

मण्डूरवटकः(बृहद)

वृ. मा.; व. से. । पाण्डु.; यो. त. । त. २७; च. सं.; र. का. घे.; भै. र.; भा. प्र.; च. द.; ग. नि.; यो. र. । पाण्डु; वृ. यो. त. । त. ७४ वै. क. हु.। स्कन्ध २.

पांडू, कुष्ठ, शोथ, उदर, उरुस्तंभ, कफ, अर्श, कामला, प्रमेह, प्लीहा

333

मण्डूरवटिका

भै. र.। शूला.

पक्तीशूल

334

मण्डूरवज्रवटकः

रसे. सा. से.; वृ. मा.; व. से. । पाण्डु.; वै. र. र.र.; धन्व.; र. चं.; र. रा. सु.; र. का.धे। ।

पाण्डु.

पाण्डु रोग, मन्दाग्नि, अरुचि, अरी, ग्रहणी विकार, उरुरतम्भ, कृमि, प्लीहा, आनाह और गलरोग

335

मण्डूरगुटिका

व. से.; र. का. धे. । पाण्डु.

पांडू, कामला

336

मदनमञ्जरीगुटिका

वृ. यो. त. । त. १४७; यो. त. । त. ८०; वै. र. । वाजीकरणा.; भा. प्र. । उ. खं.

वाजीकर

337

मदनमोदकः

भै. र. । ग्रहण्य.; र. र. ख.। अ. २७

वातज और कफज रोग, खांसी, हर प्रकारका शूल, वलीपलित, आमवात और संग्रहणी का नाश तथा अग्निकी वृद्धि, वाजीकर

338

मदनवर्धनो मोदकः

वै. र. । वाजीकरणा.

वाजीकर

339

मदनानन्दमोदकः

भै. र.। वाजीकरण.

अपस्मार, ज्वर, उन्माद, क्षय, वातव्याधि, कास, श्वास, शोथ, भगन्दर, अर्श, अग्निमान्द्य, अतिसार, ग्रहणी, बहु-मूत्र, प्रमेह, शिरोरोग, अरुचि, तथा अन्य वातज, पैत्तिक, श्लैष्मिक रोग नष्ट होते हैं, वन्ध्या, मृतवत्सा, अथवा नष्टपुष्पा, सूतिकारोग

340

मधुकाद्या गुटिका

व. से. । रक्तपित्ता.

रक्तपित्त, खांसी, श्वास, छर्दि, अरुचि, मूर्छा, हिचकी, मद, भ्रम, क्षतक्षय, स्वर भंग, पुरानी वातव्याधी, रक्तष्टीवन, हृदय और पार्श्वशूल, तृष्णा और ज्वर

341

मध्यपानीयभक्तगुटिका

रसे. चि. म. । अ. ९

अम्लपित्त, अरुचि, कष्टसाध्य संग्रहणी, अर्श, कामला, भगन्दर, शोथ, गुल्म, परिणामशूल, अग्निमांद्य, कुष्ठ, पलित, वलि, श्वास, खांसी और पाण्डु

342

मरिचादिगुटिका

यो. त. । त. २८; इ. यो. त.। त. ७८; वै. र.; च. द.; यो. र.; . मा; भा. प्र.; ग. नि.; र. र.; भै. र.; वं. से. । कासा; शा, घ. । ख. २ अ. ७; वृ. नि. र.। स्वरमेदा.; यो. चि. म. । अ. ३

कास,

343

मरिचादिमोदकः

यो. र.। अर्श.; हा. सं. । स्था. ३ अ. ११; वृ. नि. र. । अर्श.

अर्श

344

मरिचादिवटी

वृ. नि. र. । अर्श.; धन्व. । अर्श.

रक्तार्श

345

मरिचाद्या गुटिका (१)

ग. नि. । गुटिका. ४

कंठरोग

346

मरिचाद्या गुटिका (२)

ग. नि. । गुटिका. ४

अर्श

347

मलपाचनी गुटी

र. प्र. सु.। अ. ८

आम पाचन, मल नाशिनी

348

मलयूफलमोदकम्

 

यो. र. । प्रदर.; वृ. नि. र. । स्त्री रोगा,

प्रदर

349

महाकल्याणवटी

भै. र. । मदात्यया.

वातज और कफपित्तज मदात्यय

350

महाकामेश्वरमोदकः

धन्व.; र. र.

वृ. यो. त. । त. १४७

यक्ष्मा, संग्रहणी, अर्श, आनाह, प्लीहोदर, उन्माद, अग्निमांध, पुरानी खांसी, अपस्मार, प्रमेह, अश्मरी, शूल, श्वास, अरुचि, ज्वर, हृद्रोग, कृमि, कामला, पाण्डु और हलीमक

351

महाक्षारवटी

यो. र. । उपदंश

उपदंश

352

महाखदिरवटिका

व. से. । मुखरोगा.

गले ओष्ठ, जिह्वा, दांत और तालुके रोग

353

महाभक्तपाकवटी

रसे. सा. सं.। अजीर्णा.

अग्नी प्रदीप्त

354

महामदनमोदकः

ध. व.; र. र. । वाजीकरणा

कामवृद्धी

355

महामृत्युञ्जया गुटिका

र. सं. क. । उल्लास ५

सर्प विष, त्रिदोषज विसुचीका, अजीर्ण

356

महारतिवल्लभो मोदकः

धन्व.; यो. र. । वाजीक.

शुकदोष और दारुण नपुंसकता दूर होती तथा सौन्दर्य, मेधा और बुद्धिकी वृद्धि

357

महारसोनपिण्डः

भै. र.; यो. र. । आमवाता.; यो. त. । त. ४२

८० प्रकारके वातज रोग, ४० प्रकारके पित्तज रोग, २० प्रकारके कफरोग, योनिशूल, प्रमेह, कुष्ठ, उदररोग, भगन्दर, अर्श, गुल्म और क्षयादि रोग नष्ट होकर रुचि और बलकी वृद्धि

358

महाराजवटी (१)

भै. र.; र. चं.; रसे. सा. सं.। ज्वर.

कामला, पांडू, राजयक्ष्मा

359

महाराजवटी (२)

यो. र. । वाजीकरणा.; वृ. यो. त. । त. १४

वलि, पलित, कुष्ठ, क्षय, वातज, पित्तज और कफज रोग

360

महाशङ्खवटी

भै. र. । अग्निमांद्य.; र. रा. सु. । अजीर्णा.

अजीर्ण, शूल, विसूचीका, अलसक

361

महोदधिवटी (बृहत् )

र. सा. सं. । अजीर्णा.

शूल, जीर्णज्वर, कास, अरुची, पांडू, उदर, आम, अफारा, हलीमक, अग्निमांद्य

362

माक्षिकादिवटी

भै. र. । कर्ण.

समस्त नेत्र रोग

363

माणिभद्रमोदकः

च. द. । अर्श.; ग. नि. । गुटिका. ४; व. से. । विरेचना.; वा. भ. । अ. १९ कुष्ठा.; भै. र. । अर्श.

खांसी, क्षय, कुष्ठ, भगन्दर, प्लीहा, जलोदर और अर्श, वृष्य

364

मानकादिगुटिका

(माणादि गुटिका)

भै. र.। प्लीहयकृद्रो.; धन्व. । उदर.; च. द.।

प्लीहा. ३८; व. से. । उदर.

यकृत, प्लीहा, उदररोग, गुल्म, अर्श और ग्रहणी विकारका नाश तथा अग्निकीवृद्धि

365

मानकादिगुटिका (बृहत)

भै. र. । प्लीहा.

यकृत् प्लीहा, उदररोग, अफारा, गुल्म, पाण्डु, कामला, कुक्षिशूल, पार्श्वशूल, अरुचि, शोथ, श्लीपद और पुराने विषम ज्वरका नाश

366

मार्कण्डीपत्रगुटिका

ग. नि. । राजय. ६

कास

367

माषादिमोदकः

शा. ध. । खं. २ अ. ७

वाजीकर

368

मुण्डयादिगुटिका

वृ. नि. र. । ग्रहण्य

पित्तवातज और श्लेष्मज संग्रहणी तथा पित्त

369

मुण्डन्यादिगुटिका

र.र। मुखरोग.

दंतकृमी व शूल

370

मुस्तकादि‌द्मोदकः

भै. र. । ग्रहण्य.

अग्निप्रदीपक हैं तथा सरक्त ग्रहणी, अतीसार, ज्वर, पाण्डु, हलीमक, क्रिमि, रक्तपित्त, अर्श

371

मुस्तकाद्यमोदकः

भै. र.। ग्रहणी.

ग्रहणी, अतिसार, मन्दाग्नि, अरुचि, अजीर्ण, आमदोष, विसूचिका, वलीपलित, दुर्बलता तथा कृशता

372

मुस्तादिवटी

ग. नि. । मुखरो.; रा. मा. । मुखरो.

मुख दुर्गंधी

373

मुस्तादिगुटी

वृ. नि. र.| अतिसार

अतिसार, प्रवाहिका, संग्रहणी

374

मृतसञ्जीवनीगुटिका

र.सं.क.। उल्लास ५.; र. का.धे.। ज्वर. अ. १

ज्वर से उत्पन्न मूर्च्छा

375

मृतसञ्जीवनीवटिका

भा. प्र. । म. खं.। वृ. यो. त. । त. ५९

सन्निपातज ज्वर

376

मृतसञ्जीवनीवटी

र. चं.। ज्वरातिसार; रसे. सा. सं.;

भै. र.। ज्वरातिसार

ज्वरातिसार, हैजा, सन्निपात

377

मेथीमोदकः

भै. र. । ग्रहणी.; धन्व.; र. र. । वाजीकरणा.

संप्रहणी, 20 प्रकारके प्रमेह, मूत्राघात, अश्मरी, पाण्डु, खांसी, राजयक्ष्मा और कामलाको नष्ट तथा दृष्टिको स्वच्छ करता है।

378

मेथीमोदकः (वृहत्)

भै. र. । ग्रहणी.

आमवात, ग्रहणी, अर्श, प्लीहा, पाण्डु, २० प्रकारके प्रमेह, भयङ्कर खांसी तथा श्वास, छर्दि, अतिसार और हर प्रकारकी अरुचि

379

मेहमुद्गरवटिका

र. र. ; भै. र. ; रसे. सा. सं.; र. चं. । प्रमेह. ; रसे. चि. म. । अ. ९

20 प्रकारके प्रमेह, मूत्रकृच्छ्र, पाण्डु, धातुगत ज्वर, हलीमक, रक्तपित, वातज पित्तज और कफज ग्रहणी, आमदोष, अग्निमांद्य और अरुचि

380

यवाग्रजाद्या गुटिका (यवक्षारादिगुटी)

ग. नि. । मुख रोगा. कृ. नि. र.। मुख.; व. से. । मुख.; भै. र. । मुख.

समस्त गलरोग

381

यवादिवटकः

हा. सं.। स्था. ३ अ. ५०

वाजीकर

382

यवान्याद्या गुटिका

ग. नि. । गुटिका.

संग्रहणी

383

योगराजगुटिका

र. का. धे.। अपस्मा.

संग्रहणी, अतिसार

384

रक्तबोलादिंगुटिका

यो. र. । सूतिका.

मक्कल शूल, रक्त विकार

385

रजः प्रवर्तिनीवटी

भै. र. । स्त्री रोगा.

रजोनिरोध (नष्टार्तव), कष्टार्तव, और पीडितार्तव

386

रतिवल्लभमोदकः (महा) (रतिवल्लभविजयापाकः)

धन्वन्तरि । वाजीकरण; नपुंस्का. त. ४

शुक्रदोष, दारुण षण्ढत्व

387

रतिवल्लभो मोदकः

भै. र. । वाजीकरणा.

वाजीकर, वातव्याधि, वात-पित्तज रोग, पित्त – कफज रोग, रक्तपित्त, विषविकार, गुल्म, ज्वर, अग्निमांद्य, वृष्य

388

रत्नप्रभावटी

भै. र. । स्त्री. रो.

स्त्रीरोग, वृष्य, रसायनी

389

रविसुन्दरवटी

र. रा. सु.। अजीर्णा.

अग्नि बलकी वृद्धि होती और ज्वर, खांसी, वात कफज रोग, कफज रोग, 6 प्रकारके अजीर्ण और अग्निमांद्य

390

रसकर्पूरगुटिका

र. का.धे. । उपदंशा.

उपदंश

391

रसगुटिका

भै. र. । अर्श.

अर्श, अग्नीदिप्त

392

रसगुटिका

रसें. सा. सं.; र. रा. सु.; धन्व. । कासा.

कास, श्वास

393

रसचन्द्रिकावटी

रसें. सा. सं.; र. चं. भै. र.। शिरो.

समस्त जीर्ण रोग, सन्निपात, आमवात, शिरोरोग, मन्यास्तम्भ, गलग्रह, ग्रहणी, श्लीपद, अन्त्रवृद्धि, भगन्दर, कामला, शोथ, पाण्डु, पीनस और अर्श

394

रसाञ्जनादिवटी

वृ. नि. र. । अर्शो.

रक्तार्श

395

रसादिगुटिका

र. रा. सु.। वातरोगा.

पक्षाघात

396

रसादिगुटी (१)

यो. र.; वृ. नि. र. । तृष्णा., वृ.यो.त. । त. ८४

तृष्णा

397

रसादिगुटी (२)

वृ. नि. र. । स्पर्शवाता.

स्पर्शवात

398

रसादिगुटी (३)

वै. र. ; वृ. नि. र. । दाह.; र. रा. सु.; यो. र. । दाह.; वृ. यो. त. । त. ८७

दाह

399

रसादिवटी

वृ. नि. र.। ज्वरा

नवीन ज्वर

400

रसाभ्रगुटिका

र. र.; धन्व. । रसायना.

श्वास, कास, ग्रहणी, अग्निमांद्य, रसायन

401

रसाभ्रवटी

रसें. सा. सं.। ग्रहण्य.

कास, श्वास, क्षय, वातकफज रोग, ज्वर, अतिसार, चातुर्थिक ज्वर, ग्रहणी

402

रसेन्द्रगुटिका (१)

भै. र. । राजय.

सम्पूर्ण लक्षण युक्त क्षय, खांसी, रक्तपित, अरुचि, अम्लपित्त रोग

403

रसेन्द्रगुटिका (२) (बृहत्)

भै. र. । राजय.

खांसी, क्षय, श्वास, रक्तपित्त, अरुचि, पाण्डु, कृमि, ज्वर और अम्लपित्त, वाजीकर

404

रसेन्द्रगुटिका (३) (वृहद)

र. र. । कासा.; रसे. सा. सं.; र. रा. सु.;धन्व. । कासा.

खांसी, भयंकर श्वास, कफवातज रोग, अफारा, मलावरोध, अग्निमांद्य, अरुचि, उदर रोग, पाण्डु और कामला

405

रसेन्द्रवटी

भै. र.। मुखरो.

मुखरोग, वातरोग, प्रमेह, ज्वर

406

रसोनपिण्डः

(रसोनासवः)

च. द.; वै. र.; व. से. । आमवात.; वृ. मा.। आमवाता.; धन्व.; र. र. । आमवाता.

वातज रोग, आमवात, सर्वाङ्गवात, एकांग वात, अपस्मार, उन्माद, खांसी, श्वास, भग्नवात और शूल

407

रसोनपिण्ड (महा-वृहत्)

भै. र.; यो. र. । आमवाता.; यो. त. । त. ४२

८० प्रकारके वातज रोग, ४० प्रकारके पित्तज रोग, २० प्रकार के कफरोग, योनिशूल, प्रमेह, कुष्ठ, उदररोग, भगन्दर, अर्श, गुल्म और क्षयादि रोग

408

रसोनवटकः

वृ. नि. र.

हनुस्तंभ

409

राजवल्लभगुटिका

र. का.धे.। आनाह.

विरेचन

410

राजशेखरवटी

र. का.धे. । पाण्डु; र. चि. म. । स्त. ९

अग्निमांद्य, अनेक प्रकारका ज्वर, समस्त पित्त-विकार, पाण्डु, उदरवृद्धि, शूल, कफ, वायु और अनेक दुष्ट रोग

411

राजशेखरवटी

र. च. र. रा. सुं. । अजीर्णा. र. र. ; स. । अ. १८

अग्निमांद्य, अनेक प्रकारका ज्वर, अर्श, पाण्डु, महोदर, शूल, शोफ, वायु और कफ

412

राजिकादिगुटी

वृ. नि. र. । श्वास कर्म.

श्वास, कास

413

रुजादलनवटी

र. रा. सुं. । प्रमेह; रसे. चि. म. । अ. ९

गुदा का वायु, कफ, गुल्म, प्रमेह

414

रुद्रवटी

र. का.धे. । कुष्ठा.

समस्त कुष्ठ

415

रेचनीवटी

रस. चि. म. । स्तबक ९

आमनाशक

416

रोगेभसिंहवटी

र. रा. सु. । वाता.

शीत, अजीर्ण, वातकफज रोग

417

लघुकामेश्वरगुटी

यो. चि. म. । अ. ३

वाजीकर

418

लघुकामेश्वरमोदकः

धन्य. । वाजीक.

वीर्य वृद्धी, वीर्य स्तंभन

419

लघुपानीयभक्तवटी

र. रा. सु. । अग्निमां

अग्निमांद्य

420

लघुसूरणमोदकः (१)

यो. र. । अशों.

अर्श, अग्नीदीपन, पाचन

421

लघुसूरणमोदकः (२)

वृ. मा.। अर्श. यो. र.

अर्श

422

लवङ्गादिगुटिका (लवङ्गामृतवटी)

वै. र. । अग्निमांद्य.; वृ. नि. र. । अजीर्णा.

अग्निदिप्त, वृष्य

423

लवङ्गादिगुटी (१)

वृ. नि. र. । श्वासा.

श्वास

424

लवङ्गादिगुटी (२)

वृ. नि. र. । श्वासा.

श्वास, कफ

425

लवङ्गादिवटी (१)

रसे. सा. सं.। अनिमांद्य. ; र. चं.; भै. र.; र. रा. सु. । अग्निमानद्या.

जठराग्नी दिप्त

426

लवङ्गादिवटी (२)

वै. जो. । विलास ३

कास

427

लवङ्गादिवटी (३) (बृहत्)

रसे. सा. सं.। अग्निमांद्य.

ग्रहणी विकार, आम और पीड़ायुक्त अतिसार (प्रवाहिका), कफज ज्वर, शूल, कुष्ठ, अम्लपित्त, प्रबल वायु, अग्निमांद्य और कोष्ठगत वायु

428

लवङ्गाद्या गुटिका

ग. नि. । गुटिका.

अर्श, पाण्डु, हृदयशूल, पार्श्व-शूल, कास, गुल्म, अरुचि, श्वास, हिचकी, गलग्रह, ज्वरातिसार और तन्द्रा

429

लवङ्गाद्य मोदकम्

भै. र. । अग्निमांद्य,

अम्लपित्त, अग्निमांद्य, अजीर्ण, कामला, पांडू, संग्रहणी, अतिसार

430

लवणवटी.

वा. भ. । चि. अ. १० ग्रहण्य.

अग्निदीपन, पाचनी

431

लाक्षादिवटी

रसे. सा. स.; र. रा. सु. । कृम्य. ; र. चं.। कृमि.

सर्प, चुहे, डांस, कीट पलायन कर जाते है

432

लाङ्गल्यादिमोदकः

वृ. नि. र. । अर्श.

कफज अर्श

433

लीलावतीवटी

र. रा. सु.; वै. र. । ज्वरा.

जीर्णज्वर, आमज्वर, विषमज्वर

434

वचादिवटी

वृ. नि. र. । शूला.

शूल, वायु, अग्निमांद्य

435

वज्रकगुटिका (१)

ग. नि. र. का.धे.। पाण्डु

कुष्ठ, उदर रोग, श्वास, गल-रोग, भगन्दर, मूत्रविबन्ध, गुल्म, राजयक्ष्मा, अर्श, कास, हिक्का, प्लीहा, विषमज्वर और वली पलित

436

वज्रकगुटिका (२)

ग. नि. । गुटिका. ४: र. का.धे. । पाण्डु.

पाण्डु, रक्तविकार, प्रमेह, गल-ग्रह, राजयक्ष्मा, खांसी, वात विकार, श्वास, शोष और उदर

437

वज्रवटी

भै. र.। कुष्ठा. ; र. रा. सु.; रसे. सा. सं. । कुष्ठा. ; रसे. चि. म. ।

पामा

438

वटप्ररोहादिगुटिका (१)

यो. चि. म. । अ. २; यो. र. । तृष्णा. ; वृ. मा.; ग. नि. । तृष्णा. १६

तृष्णा

439

वटप्ररोहादिगुटिका (२)

यो. र. । तृष्णा.

तृष्णा

440

वडवामुखीगुटी

र. र. स. । उ. अ. १६

कफ, कास, श्वास, शूल, अग्नि-वैषम्य, गुल्म और शोथ

441

वत्सकाद्या गुटिका

ग. नि. । अतिसारा. २; व. से.

अतिसार, ग्रहणी, अग्निमांद्य

442

वत्सनाभाद्या गुटिका

ग. नि. । गुटिका ४

कफ

443

वल्लभा गुटिका

न. मृ. । त. ५

नपुंसकता, वाजीकर

444

वाजीकरणगुटिका

न. मृ.। त. ५

वाजीकर

445

वाजीकरो वटकः

र. र. रसा. ख. उप. ६

वाजीकर

446

वातनाशिनी वटी

र.चि. । स्त. ९

दण्डापतानक, पक्षाघात, ऊरुस्तम्भ, गृध्रसी, गलग्रह, हनुग्रह, अपस्मार और अग्निमांद्या

447

वानरी गुटिका

न. मृ.। त. २; यो. र.

शीघ्रपतन, नपुंसकता

448

वारिभक्तवटिका

र. र. । अग्निमांद्य

आमाजीर्ण

449

वार्त्ताकुगुटिका

धन्व.; व. से. च. द.; भै. र. । ग्रहण्य,; वृ. मा. । अजीर्णा.; ग. नि. । गुटिका. ४

कास, श्वास, विसुचीका, प्रतीश्याय, हृद्रोग

450

विजयवटी

रसें. सा. सं.। हिक्काश्वासा. ।

खांसी, श्वास, क्षय, गुल्म, प्रमेह, विषमज्वर, प्रसूत रोग. संग्रहणी, पाण्डु और हाथ पैरोंकी दाह

451

विजया गुटिका (१)

.र. सं. क.। उल्ला. ५

कास, श्वास, क्षय, गुल्म, प्रमेह, विषमज्वर, शोथ, पाण्डु, कुष्ठ, ग्रहणी, अर्श और भगन्दर

452

विजया गुटिका (२)

र. का. धे. । भगन्दरा.

खांसी, श्वास, क्षय, गुल्म, प्रमेह, विषमज्वर, शोथ, पाण्डु, कुष्ठ, संग्रहणी, अर्श और भगन्दर

453

विजया वटिका (बृहद)

र. चं. । पाण्डु.; र. र. स. । अ. १९ ; यो. चि. म. । गुटिका. ३; वै. र. । वातव्या.

शोथ, पांडू

454

विजया वटिका

रसे. सा. । ग्रहण्य

ग्रहणी

455

विडङ्गसाराद्या गुटिका

ग. नि. । गुटिका. ४

कास, क्षय, कुष्ठ, भगंदर, प्लीहा, जलोदर, अर्श

456

विडङ्गादिमोदकः (१)

व. से. । कुष्ठा.

कुष्ठ

457

विडङ्गादिद्मोदकः (२)

ग. नि.। शूला. २३; वृ. नि. र. । शूला. ; व. से. वृ. मां.। परिणाम शूला.; यो. र.;

वृ. यो. त. । त. ९५

अग्नीवृद्धी, त्रिदोषज परिणाम शूल

458

विडङ्गादिवटिका

धन्व. । व्रणा.

व्रण

459

विरेचनीगुटिका

र. प्र. सु. । अ. ८

विरेचन

460

विश्वादिवटी

वैद्या. । विषय २२

शूल, अग्निमांद्य, वातज रोग

461

विश्वादिवटी

यो. र. । अतिसा.

अतिसार, संग्रहणी

462

विषगुटिका

ग. नि. । गुटिका ४

८० प्रकारके वातज रोग, 20 प्रकारके कफज रोग, ७ प्रकारके क्षय, १८ प्रकारके कुष्ठ और अग्निमांद्य

463

वीर्यस्तम्भकरी वटिका

र. प्र. सु. । अ. १३

वीर्यस्तंभन

464

वीर्यस्तम्भकवटिका

र. चं.। वाजीकरणा.

वाजीकर

465

वीर्यस्तम्भकवटी

यो.र.

वीर्यस्तंभन और बल, वर्ण तथा अग्नीकी वृद्धि

466

वीर्यस्तम्भनी गुटिका

न. पृ.। त. ५; १. यो. त.। त. १४७ । र. पं. । वाजीकरणा.

वीर्यस्तंभन

467

वृकोदरी वटी

र. र. स. । उ. अ. २१; र. चं.। वाता.

समस्त वातज रोग, शोष, कफ रोग, आमजनित विकार, अग्निमांद्य, ग्रहणी और 4 प्रकारका अजीर्ण

468

वृद्धदारुमोदकम्

वै. र. । अशों. शा. सं.। से. २ अ. ७; वृ. नि. र. । ग्रहण्य.

अर्श

469

वृद्धिवाधिकावटिका

भै. र.; भा. प्र.। वृद्ध्य.

आन्त्रवृद्धी

470

वृष्यगुटिका

च. सं. । चि. अ. २ वाजीकर.

वाजीकर

471

वृहज्जीरकादिमोदकः

भै. र.। ग्रहण्य.

वातज, पित्तज रोग, अतिसार, शूल, अर्श, जीर्ण ज्वर, विषम ज्वर, सूतिका रोग, प्रदर, दाह

472

वृहत्कामेश्वरमोदकः

र. र. । वाजी.

संग्रहणी, उदर

473

वृहत् खदिरवटिका

भै. र.; र. र.; वृ. मा. ; च. द. । मुखरोगा.

मुखरोग

474

वृहदङ्कोलवटकः

ग. नि. । गुटिका.

अतिसार

475

वृहद्रसेन्द्रगुटिका

भै..|राजय

रसेन्द्रगुटिका सम

476

वृहद्रसोनपिण्डः

वृ. यो. त. । त. ९३.

८० प्रकारके वातज रोग, ४० प्रकारके पित्तज रोग, २० प्रकार के कफरोग, योनिशूल, प्रमेह, कुष्ठ, उदर-रोग, भगन्दर, अर्श, गुल्म और क्षयादि रोग

477

वृहन्माणकादिगुटिका

भै.र.प्लीहा

यकृत्, प्लीहा, उदररोग, अफारा, गुल्म, पाण्डु, कामला, कुक्षिशूल, हृदयका शूल, पसलीकी पीड़ा, अरुचि, शोथ, श्लीपद

478

वृहन्मेथीमोदकः

भै.र.ग्रहणी.

आमवात, ग्रहणी, अर्श, प्लीहा, पाण्डु, २० प्रकारके प्रमेह, भयङ्कर खांसी तथा श्वास, छर्दि, अतिसार और हर प्रकारकी अरुचि

479

वृहल्लवङ्गादिवटी

रसे. सा. सं. । अग्निमान्द्या

ग्रहणी विकार, आम और पीड़ायुक्त अतिसार (प्रवाहिका), कफज ज्वर, शूल, कुष्ठ, अम्लपित्त, प्रबल वायु, अग्निमांद्य और कोष्ठगत वायु

480

वृंहणी गुटिका

च.। चि. स्था. अ २

वाजीकर

481

वेद‌विद्यावटी (१)

भै.र.प्रमेह.

प्रमेह

482

वेद‌विद्यावटी (२)

र.का.धे.|प्रमेह

मधुमेह

483

वैद्यनाथवटिका

र. सा. सं; र. च. । संग्रह. ; धन्व.; र. र.; र. रा. सु.; । संग्र.

ग्रहणी, आमवात, अग्निमांद्य, ज्वर, प्लीहा, उदर

484

वैद्यनाथवटी (१)

भै. र. । शोथा. धन्व. । शोथा.

सन्निपात, शोथ युक्त ग्रहणी, पाण्डु, अग्निमांध और शुक्र मज्जागत विषम ज्वर

485

वैद्यनाथवटी (२)

रसे. सा. सं. धन्व. । उदावर्त्ता, ; र. रा. सु. । उदाव. रसे. चि. म. । अ. ९

उदर रोग, गुल्म, पाण्डु, कृमि, कुष्ठ, गात्रकण्डु (खुजली), और पिडिका

486

वैद्यनाथवटी (३)

धन्व.; र. रा. सु.; भै. र. । ज्वरा.

शूल, नवीन ज्वर, पांडू, अरुची,शोथ

487

व्योषादिगुटिका (१)

वै. र,; वृ. नि. र.। कासा. शा. से. । खं. २ अ. ७; यो. चि. म. । अ. ३

कास, पीनस, श्वास, अरुची, स्वरभेद

488

व्योषादिगुटिका (२)

यो. र. । अर्शो.

अर्श, त्वग्विकार

489

व्योषादिवटी

वा. भ. । कल्प अ. २

मूत्रकृच्छ, ज्वर, च्छर्दी, कास, शोष, भ्रम, क्षय, ताप, पाण्डु, अग्निमांद्य और विषविकार

490

व्योषान्तिकागुटिका

ग. नि. । कासा. १०; वृ. मा. ; र. र. । कासा.

खांसी, श्वास, अरुचि, पोनस, हृदय कण्ठ और वाणीका अवरोध, ग्रहणीविकार, और अर्श

491

शङ्करवटी

भै. र. । हृद्रोगा.

फुफ्फुस रोग, हृदय रोग, जीणेज्वर, २० प्रकारके घोर प्रमेह, कास, श्वास, आमवात और भयंकर ग्रहणी रोग

492

शङ्खवटी(१) (बृहद्)

र. रा. सु.; र. का.धे. ; भा. प्र. म. खं. २। अजीर्णा.

अजीर्ण, शूल, विसुचीका, अलसकादी

493

शङ्खवटी (२)

वृ. यो. त. । त. ७१

शूल, अजीर्ण, अग्निमांद्य, अरुची, मूत्रकृच्छ

494

शङ्खवटी (३)

भै. र.; रसे, सा. सं. र. रा. सु.; र. का.धे. । अग्निमांद्या.

अग्निवर्द्धक, शूलनाशिनी और पाचनी है। इसके सेवनसे कास, श्वास, क्षय, अग्निमांद्य, वातव्याधि, उदरवृद्धि, तृष्णा और कृमि आदि

495

शङ्खवटी (४)

(चीन्चाशांखवटी)

यो. र. । गुल्मा.

पांच प्रकारका गुल्म, समस्त प्रकारके अजीर्ण, शूल, विसूचिका और अग्निमांद्य, ग्रहणी

496

शङ्खवटी (५)

र. चं.; रसे. सा. सं.। अजीर्णा.

ग्रहणी, अम्लपित्त, शूल, अग्निमांद्य और आमका नाश

497

शङ्खवटी (६)

र. का. धे.; यो. र. । अजीर्णा. ; वृ. यो. त. । त. ७१; यो. त. । त. २४

दीपन पाचन हैं तथा वातज पित्तज और कफज अजीर्ण, विसूचिका, शूल और अफारा

498

शङ्खवटी (७)

र. का. धे.; भै.र.; रसे. सा. सं. ; र. चं.; र. रा. सु. । अग्निमांद्या.

अजीर्ण, ज्वर, गुल्म, पाण्डु, कुष्ठ, शूल, प्रमेह, वातरक्त, शोथ

499

शङ्खवटी (८)

भा. प्र. म. खं. २ । अजीर्णा. ; भै. र. ; र. रा. सु.; यो. र.; र. का. धे. । अग्निमांद्या. ; यो. चि. म. । अ. ३; वृ. यो. त. । त. ७१; रसे. चि. म. । अ. ९; र. सं. क. । उल्लास ५

अजीर्ण, उदररोग, शूल विसूचिका, अग्निमांद्य और गुल्म

500

शङ्खवटी (९)

भै. र.; र. रा. सु.; र. का.धे. अग्निमांद्या

अर्श, ग्रहणी, कुष्ठ, प्रमेह, भगन्दर, प्लीहा, अश्मरि, श्वास, कास, उदर-कृमि, हृद्रोग, पाण्डुरोग और मलावरोध

501

शठयादिकाङ्कायनवटी

वृ. नि. र. । गुल्मा.

गुल्म, बवासीर, हृद्रोग, कृमी

502

शठ्यादिगुटिका

च. सं. । चि. स्था. ९.अ. ५

गुल्म, प्लीहा, अफारा, श्वास, कास, अरुचि, हिचकी, हृद्रोग, अर्श, अनेक प्रकारकी शिर पीड़ा, पाण्डु, कफोक्लेश, प्रवाहिका तथा पार्श्व, बस्ति और हृदयका शूल

503

शतावरीमोदकः

र. र. ; धन्व. । वाजीकरणा.

वाजीकर

504

शशिलेखावटी

यो.र.कुष्ठ

श्वित्र

505

शिग्रुत्वचादिवटिका

ग. नि. । वाता. १९

सर्वांग वायु

506

शिलाजतुवटीका

भै.र. स्त्रीरोग

पांडू, कुष्ठ, ज्वर, प्लीहा, तमकश्वास, अर्श, भगंदर, शुक्रदोष, मेह, मेहोदर, कास, रक्तपित्त, रक्तप्रदर

507

शिवगुटिका (लघु)

ग. नि. । गुटिका. ४ : र. का.धे. । पाण्डु.; व. से. । पाण्डु.

पाण्डु, कुष्ठ, ज्वर, प्लीहा, तमक श्वास, अर्थ, भगन्दर और मूत्रकृच्छ्र

508

शिवा गुटिका.

व. से. ; च. द. । राजयक्ष्मा.

यक्ष्मा,वातरक्त, ज्वर, योनिदोष, शुक्र दोष, प्लीहा, अर्श, पाण्डु, ग्रहणी, व्रण, वमन, गुल्म, पीनस, हिचकी, कास, अरुचि, श्वास, जठर, श्वित्र कुष्ठ, नपुंस्कता, मद, शोष, उन्माद, अपस्मार, मुखरोग, नेत्ररोग, शिरोरोग, आनाह, अतीसार, रक्तप्रदर, कामला, प्रमेह, यकृत्, अर्बुद, विद्रधि, भगन्दर, रक्तपित्त. अति कृशता, अति स्थूलता, स्वेद, श्लीपद, दंष्ट्रा विष, मूल विष और अनेक प्रकारके संयोगज विष

509

शिवामोदकम्.

भै. र. । बालरो.

बाल्ररोग, पुष्टीकारक, बलवर्धक, जठराग्नीप्रदीपक, मेध्य, आयुष्य

510

शुक्रमातृकावटिका.

र. र. । प्रमेह.

२० प्रकारके प्रमेह, मूत्रकृच्छ, अश्मरि और ज्वर

511

शुक्रसञ्जीवनीयो मोदकः

र. र. । रसायना. धन्व. । रसायना.

बल, वीर्य, तेज वृद्धी

512

शुक्रस्तम्भकरा वटकाः

र. प्र.सु.

वाजीकर

513

शुक्रस्तम्भकरीवटिका

र. प्र. सु. । अ. १३

वीर्यस्तंभन

514

शुण्ठयादिगुटी

वृ. नि. र. । अरोचका.

अग्निमांद्य

515

शुण्ठयादिगुटी.

वृ. नि. ग्. । मूर्छा.

मूर्छा

516

शूलगजकेसरीगुटिका.

वै. र. । शूला.

शूल, आध्मान, विबन्ध, गुल्म, कास, श्लेष्मा, आमवात, अग्निमांद्य, उदररोग, अरुचि और ज्वर

517

शुलवज्रिणी वटिका.

र.च., र. रा. मु.। शूला.

शूल, प्लीहा, गुल्म, उदर रोग, अम्लपित्त, आमवात, कामला, पाण्डु, शोथ, गलग्रह, वृद्धि रोग, श्लीपद, भगन्दर, कास, श्वास, व्रण, कुष्ठ, कृमि, हिचकी, अरुचि, अर्श, ग्रहणी रोग, समस्त प्रकारके अतिसार, विसूचिका, कण्डू, अग्निमांद्य, पिपासा, पीनस और अन्य बहुतसे वातज, पित्तज तथा कफज रोग

518

शूलेभसिंहनी वटी.

र. का. धे. । शूला.

शूल, नेत्रस्राव

519

श्रीखण्डवटी.

र. रा, सु. । वाता. ; घ.; र. का.धे. । वातव्या.

शीत, अजीर्ण, वातकफज रोग

520

श्रीफलकुसुमवटिका.

र. चं.। स्त्री रोगा.

सूतिकारोग

521

श्वासकासन्घी वटी.

र. र. स. । उ. अ. १३

श्वास, कास

522

श्वित्रहरी वटी.

र. चि. म. । स्त. ४

श्वित्र

523

सञ्जीवनी वटी

शा. घ.

अजीर्ण, गुल्म, विसुचीका, सर्प दंश, सन्निपात

524

सन्धिवातारिगुटिका

र. चं. । शूला.

समस्त वातव्याधि, कष्टसाध्य संधिवात

525

सप्तलाद्यो मोदकः

ग. नि. । गुटिका. ४

वातकफज ज्वर, पक्वाशयशूल

526

सप्तशालिवटी

भा. प्र.; धन्व.

उपदंश

527

सप्तसमावटी

वा. भ. । चि. अ. १९

कुष्ठनाशक, वृष्य

528

सप्तामृतावटी

(सप्तोत्तरावटी)

र. र. स.| उ.अ.१३; र.चं|श्वास; र.रा.सु.| श्वास

५ प्रकार का कास, ऊर्ध्व श्वास

529

सर्वज्वरहरवटी

भा. प्र. । म. ख. २

जीर्णज्वर, आमज्वर, विषमज्वर

530

सर्वज्वराङ्कुशवटी

भै. र.; र. रा. सु.

सन्निपात, विषम, प्राकृत, वैकृत, वातकफज, अंतर्गत, बहिरस्थ, निराम, साम आदि समस्त ज्वर

531

सर्वरोगान्तकवटी

र. र. स. । उ. अ. १६ ; र. चं. । अजीर्णा.

अग्निमांद्य

532

सर्वाङ्गसुन्दरी गुटिका

यो. र. । कुष्ठा. वृ. यो. त. । त. १२०

कुष्ठ

533

सर्वातिसारहारिणीगुटिका

वै. र. । अतिसारा.

समस्त प्रकार के अतिसार

534

सहकारगुटिका

च. द. । मुखरोगा. ५५ ; र. र. । मुखरोगा.

मुखपाक आदि

535

सहकारवटी

भै. र. । मुखरोगा.

कण्ठ, ओष्ठ, जिह्वा, दांत और तालु के रोग

536

सारिवादिवटी

भै. र. । कर्ण.

समस्त कर्ण रोग, २० प्रकार के प्रमेह, रक्तपित्त, क्षय, श्वास, क्लीवता, जीर्णज्वर, अपस्मार, मद, अर्श, हृद्रोग, मदात्यय

537

सावित्रवटकः

व. से. । पाण्डु.

कृमिरोग, अग्निमांद्य, शोथ, गुल्म, उदर, व्रण, कामला, पांडू, अर्श, भगंदर, ज्वर, वातज प्रमेह

538

सितमलगुटिका

वृ. यो. त. । त. ८०

श्वास, कास, शूल, ज्वर, अजीर्ण, उदर

539

सितादिगुटिका

वृ. नि. र। अरुचि.

अरुची

540

सिद्धवटी

वृ. नि. र.

सन्निवात

541

सिन्दूरादिवटी

धन्व. । वाजी.

वीर्यस्तंभन

542

सुकुमारमोदकम्

भै.र.| अग्निमांद्य

वातज अजीर्ण, उदावर्त, आनाह, विष्टंभ

543

सुधावटी

वा. भ. । चि. अ. १० ग्रहण्य.

कास, श्वास, अर्श, विसुचिका, प्रतिश्याय और हृद्रोग

544

सुरसुन्दरीगुटिका

र. चं.| वाजीकरणा

र.र.;

धन्वं.|रसायना

वृष्य, वलीपलित

545

सुरसुन्दरीवटिका

र. र. रसा. । उप. ३

जरा, अकालमृत्यू

546

सुवर्चलादिगुटिका

च. द. । शूला. २६; १. नि. र. । शूला.; भै. र. । शूला.; वै. र.; ग. नि. । शूला. २३

वातज शूल

547

सूतादिगुटिका

यो. र.; र. चं; र.रा.सु.| अरोचका.;वृ.यो.त.|त.८२

अरुची, जिव्हा व मुख शुद्धी

548

सृतादिवटी (१)

र. च.। उपदंशा.

उपदंश

549

सूतादिवटी (२)

र. रा. सु.; वृ. नि. र. । अतिसारा.

ज्वरातिसार

550

सूतादिवटी (३)

र. रा. मु.; वृ. नि. र. । ग्रहण्य.

कास, श्वास, क्षय, गुल्म, प्रमेह, विषमज्वर, प्रसूतरोग, संग्रहणी, पांडू, हस्तपाद दाह

551

सूतिकातङ्कनाशिनीवटी

र. चे.

सूतिकारोग, ज्वर, तृष्णा, अरुची, शोथ

552

सूरणमोदकः (१)

यो. र.; वृ. नि. र. । अर्शो.

शूल, संग्रहणी, अतिसार, दुष्ट प्रवाहिका, गुल्म, अरी और प्रबल वातव्याधि

553

सूरणमोदकः (२) (बृहद्)

भै. र.; वै. र.: वृ. मा.; यो. र. । अशों.; ग.नि. । गुटिका ४; र. चि. म. । स्त. ९; च. द. । अशों. ५

अर्श, शोथ, श्लीपद, गरविष, ग्रहणी, हिक्का, वली, पलित, श्वास, कास, राजयक्ष्मा, प्रमेह, प्लीहा

554

सूरणमोदकः (३) (लघु)

यो.र.|अर्शो

अर्श, दीपन पाचन

555

सूरणवटकः (१) (लघु)

शा. सं.। खं. २ अ.

अर्श

556

सूरणवटकः (२) (बृहद्)

शा. सं.। खं. २ अ. ७

अत्यन्त अग्निवर्द्धक और उत्तम अर्शनाशक है। इसके सेवनसे वातकफज ग्रहणी, श्वास, कास, क्षय, प्लीहा, श्लीपद, शोथ, हिक्का, प्रमेह, भगन्दर और पलितका नाश होता है। यह वृष्य, मेधावर्द्धक और रसायन है।

557

सूरणवटिका (लघु)

ग. नि. । गुटिका. ८

असाध्य कास

558

सूर्यचन्द्रप्रभा गुटिका

ग. नि. । गुटिका. ४

श्वास, कास, शोष, अरुची, पार्श्वपीडा, अर्श, कामला, प्रमेह, पांडू, हलीमक, हृद्रोग, मुत्रकृच्छ, शोथ, संग्रहणी, यकृत, प्लीहा, कृमिरोग, ग्रंथी, भगंदर, श्लीपद, गंडमाला, व्रण, नाडीव्रण, अतिस्थूलता, अतिकृशता, विद्रधी, पिडका, नासारोग, नेत्ररोग, शिरोरोग, समस्त मुख रोग, रक्तपित्त, स्वरक्षय, सन्निपात ज्वर, विषमज्वर, पैत्तिकज्वर, द्वंद्वज ज्वर, २० प्रकार के कफ रोग

559

सूर्यप्रभागुटिका (१)

र.र.स.|उ.अ.१९

अग्नीदिप्त

560

सूर्यप्रभागुटिका (२)

यो.र.|क्षय; वृ.यो.त.|त.७६

शोष, कास, उर:क्षत, तमकश्वास, पांडू, कामला, गुल्म, विद्रधी, पार्श्वशूल, उदर, क्षीणता, कृमी, कुष्ठ, अर्श, विषमज्वर, ग्रहणी, मूत्राघात

561

सूर्यप्रभागुटिका (३)

वृ.नि.र.; र.रा.सु.|वातव्या.; व.से.|वातरक्त

उरुस्तंभ, अर्दित, गृध्रसी, विद्रधी, श्लीपद, गुल्म, पांडू, हलीमक, ५ प्रकार के कास, मुत्रकृच्छ, गलग्रह, आनाह, अश्मरी, वर्ध्म, ग्रहणी, अवबाहुक, अरुची, पार्श्वशूल, उदर, भगंदर, भगंदर, हृद्रोग, शूल, कंप, विषमज्वर, उर:क्षत, मुखरोग

562

सैन्धवादिगुटिका

वृ. मा.। अजीर्णा., ग. नि. । अजीर्णा. ५

पाचनशक्ती

563

सैन्धवादिगुटो

वै. म. र. । पट. ८

पित्तज गुल्म

564

सैन्धवादिवटी

र. र. । ब्रन्घ.

ब्रन्घ, उदर रोग, मूत्रकृच्छ्र, पाण्डु, कामला, राजयक्ष्मा, प्लीहोदर, कुष्ठ, आमवात, शोथ, ज्वर, प्रमेह, वातरोग, कफरोग और पित्त-रोगों

565

सोरगुटिका

र. का. धे.। उदरा.

यकृत रोग

566

सौभाग्यशुण्ठिपाकः (सौभाग्यशुण्ठीमोदकः)

भै.र.; धन्वं|अम्लपित्ता

अम्लपित्त, अरुची, शूल, हृद्रोग, वमन, कंठदाह, हृदाह, शिरशूल, अग्निमांद्य, हृदयशूल, पार्श्वशूल, कुक्षीशूल, बस्तीशूल, गुदपीडा

567

स्तम्भनवटिका (१)

न. मृ.। त. ५; वै. र. । वाजीकरणा. ; धन्व. । वाजीकरणा.

वीर्यस्तम्भन

568

स्तम्भनवटिका (२)

वै. र. । वाजीकरणा. ; धन्वं. । वाजीकरणा,

वीर्यस्तम्भन

569

स्तम्भनवटिका (३)

धन्व. । वाजीकरणा.

वीर्यस्तम्भन

570

स्पर्शवातान्तकृद्वटी

वृ.नि.र.|स्पर्शवाता

स्पर्शवात

571

स्वयंगुप्तादिमोदकः

ग. नि. । वाजीकरणा.

वीर्यस्तम्भन

572

स्वर्णादिगुटिका

र.का.धे.| नेत्ररोगा

समस्त नेत्ररोग

573

स्वजिकावटी

वृ. नि. र. । गुल्मा.

गुल्म

574

स्वल्पखद्रिवटिका

भै. र. । मुखरोगा. वृ. मा. व से.; च. द. र. र. । मुखरोगा.

दंत, ओष्ठ, मुख, जिव्हा, तालुरोग

575

स्वल्परसोनपिण्डः

वृ. यो. त. । त. ९०; व. से. । वातव्या. यो. त. । त. ४०

अर्दित, अपतन्त्रक, एकाङ्ग वात, सर्वाङ्ग वायु, उरुस्तम्भ, गृध्रसी, दन्द्वज शूल, कृमि, कटि शूल, पृष्ट शूल और वातोदर

578

स्वल्पसूरणमोदकः

शा. सं.। खं. २ । अ. ७; भै. र. । अशों,; च. द. । अशों. ५; व. से. । अशों.

अर्श

579

हृयचोलीवटिका

र. चं.। रसायना.

विरेचन

580

हरीतक्यादिगुटिका (१)

र. र. । कासा.

कास

581

हरीतक्यादिगुटिका (२)

(हरीतक्याद्यो मोदकः)

वै. र. । कासा; यो. र.; वृ. नि. र.; च. ८. । कासा. ११; र. र.; व. से. । कासा; १. यो. त. । त. ७८; भा. प्र. म. खं. २। कासा.

कास, अग्निदिप्त

582

हरीतक्यादिगुटी

भा. प्र. म. खं. २। ज्वरा.; वृ. नि. र.। ज्वरा.

ज्वर, कास, श्वास, मलावरोध, अग्निमांद्य

583

हरीतक्यादिवटिका

ग. नि. । उदरा. ३२

समस्त प्रकार के उदर रोग

584

हिङ्ग्वादिगुटिका (१)

धन्व. । शूला.

वातज शूल

 

585

हिङ्ग्वादिगुटिका (२)

भै. र. ; पृ. मा.; व. से. । गुल्मा.; है. यो. त. । त. ९८

अरुची, अफारा, मलावरोध, अग्निमांद्य

586

हिङ्ग्वाद्या वटी (हिङ्ग्याव्ययटकः)

वृ. यो. त. । त. ९४ ; र.र.; व. से. । शूल.

हृदयशूल, पार्श्वशूल, मन्यास्तंभ, कुक्षीशूल

587

क्षारगुटिका (१)

रसे. चि. म. । अ. ९; रसे. सा. सं; धन्व; च. द.; र. रा. सु. । शोथा.; ग. नि. । गुटिका. ४; च. सं । चि. अ. १२ श्वयथु.

प्लीहा, उदररोग, श्वित्रकुष्ठ, हलीमक, अर्श, पाण्डु, अरुचि, शोष, शोथ, विसूचिका, गुल्म, गरविष, अश्मरि, श्वास, कास और कुष्ठ

588

क्षारगुटिका (२)

च. सं. । चि. अ.. १९ ग्रहण्य.

कास, श्वास, अर्श, विसूचिका, प्रतिश्याय और हृद्रोग

589

क्षारगुटिका (३)

व. से.। उदरा.; वा. भ. । चि. अ. १५ उदररो.

मुखशोथ, जलोदर

590

क्षारगुटिका (४)

भै. र.; च. द.; व. से. । मुखरोगा.

कंठ रोग

591

क्षारवटी (महा)

यो. र.। उपदंशा.

उपदंश

592

क्षीरवटी

भै. र. । शोथा.

शोथ, संग्रहणी, अतिसार, जीर्णज्वर

593

क्षुधावतीगुटिका (१)

भै. र. । अम्लपित्ता.

अम्लपित्त, प्लीहा, श्वास, आनाह, आमवात, परिणामशूल तथा कास

594

क्षुधावतीगुटिका (२)

भै. र.; धन्व. । अम्लपित्ता.

अजीर्ण, भस्मक रोग, अम्लपित्त और परिणाम शूल, तथा अग्निदीप्त

595

क्षुधावतीगुटिका (३)

रसे. सा. सं.; भै. र.; र. रा. सु.; च. द.; रे. का. घे. । अम्लपित्ता.; रसे. चि. म. । अ. ९

अम्लपित्त, परिणाम शूल, पाण्डु, गुल्म, शोथ, उदररोग, गुद-रोग, राजयक्ष्मा, पांच प्रकारकी खांसी, अग्निमांद्य, अरुचि, प्लीहा, श्वास, आनाह और दारुण आमवात

 

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